उन्नीसवीं शताब्दी के अंत पर जब एक थका हुआ सा Post- Impressionism आखिरी साँसें गिन रहा था, हेनरी मातिस की अगुवाई में एक क्रांतिकारी आन्दोलन 'फाओइज्म' योरोपीय चित्रकल में उभर कर आया (फाव का फ्रांसीसी भाषा में अर्थ जंगली जानवर होता है) यह आन्दोलन शुद्ध रंगों का उपयोग ओर फार्म का साहसिक विरूपण के लिए जाना जाता है. रंगों और फार्म का अनोखा इस्तेमाल जनता को चकाचौंध करने पूर्ण रूप से सफल रहा, किंतु इस से भी संतुष्ट न हो कर मार्सल ड्यूशेम्प एक कदम आगे बढ़ गए और दादाईज्म की शुरुआत कर लोगों की कला के विषय में पारंपरिक धारणा पर करार प्रहार किया. इन कलाकारों ने मूत्र पाट के साफ़ सफ़ेद दीवार के सम्मुख एक कलाकृति की तरह पेस किया. लेकिन, शुक्र है जनता की सदमे को सहने की क्षमता ज्यादा नही होती इसलिए जल्दी ही ये आन्दोलन छितर कर लुप्त हो गए। किंतु इस सब का एक फायदा यह हुआ के अन्य चित्रकार अब कला को अन्य रूपों में भी देखने लगे और जल्द ही शांत क्यूबिज्म, अमूर्त कला में Expressionism और रहस्य तथा स्वप्ना के मनिस्न्त फंतासी लिए अतियथार्थवाद अस्तित्व में आए।
सरिय्लिज्म अति यथार्थ है; रहस्य, समय की स्थिरता और स्वप्निल फंतासी है, आध्यात्मिक स्तर में कुछ सूफी मत के सदृश। अतियथार्थवाद जादू है और हमारी प्रकृति से मेल खाता है इसलिए कभी मंद नही पड़ता. अतियथार्थवाद की प्रतिनिधि कलाकृति सल्वाडोर डाली की 'Persistence of Memory' है लेकिन इसे हम कला के सभी माध्यमों में देख सकते हैं यह साहित्य में विद्यमान है तो छायाचित्रों में भी मिलेगा :
Tuesday, October 28, 2008
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बोधिसत्त्व : श्रावस्ती पर एक और कथा
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