शिशिर कणों से लदी हुई कमली के भीगे हैं सब तार
चलता है पश्चिम का मारुत ले कर शीतलता का भार
भीग रहा है रजनी का वह सुंदर कोमल कबरी भाल
अरुण किरणसम कर से छु लो, खोलो प्रियतम खोलो द्वार
- जयशंकर प्रसाद
बचपन में ये कविता पढ़ी थी, आज तक नही भूला। अफ़सोस हिन्दी कविता का एक बेहतरीन दौर छायावाद पलक झपकते ही गुज़र गया।
Friday, October 31, 2008
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Dawn
By Kali Hawa I heard a Bird In its rhythmic chatter Stitching the silence. This morning, I saw dew Still incomplete Its silver spilling over...
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प्राचीन काल में वितस्ता नदी के तट पर ऋषिवर मुंडकेश्वर, 5000 गाय सहित, एक विशाल आश्रम में रहते थे । अनेक ऋषि और सैकड़ों विद्यार्थी वहां रह ...
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इंसान बाज़-औक़ात शर्मिंदा हो जाता है ऐसी बातों से जिसमें उसका कोई कसूर नहीं होता मसलन लोग अपनी ग़रीबी पर ही शर्मिंदा महसूस करते हैं जब कोई अम...