Thursday, April 10, 2008

बूट !

जूते में वह बात कहाँ !
बूट का वह रुतबा कहाँ
उस में वह दम ख़म नही
तेज़ -ओ - तर्रार अदा कहाँ
मुलायम गोष्त पर जब पडता
है ख़ुद ब ख़ुद चमक उठता है
जूता अव्वल तो बदन पर उठता नही
जो उठा भी तो पिल -पिला हो जाता है
बूट पुराना नही होता फेंक दिया जाता है
जूते का नसीब घिस जाना है
सुराख़ होने तक रगड खाना है
अफ़सोस के 'चीन' के पास बूट है
मासूम 'तिब्बत' जूते पे रोता है !


काली हवा

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