Sunday, September 28, 2008

किम आश्चर्यम....... 2

(कल का शेष )

यक्ष - युधिष्ठिर तुम स्वयं का ही प्रतिवाद कर रहे हो । एक सदियों पुराने मिथक को ध्वंश कर एक शॉक का निर्माण कर रहे हो और शॉक भी तो समीक्षा से साफ़ बच निकलता है। ऐसा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि तुम सही हो?

युधिष्ठिर - क्यूंकि मुझे पता है के सबे ज्यादा विस्मित करने वाली बात क्या है।

यक्ष - और वह क्या है ?

युधिष्ठिर - यक्ष! जीवन हँसी मज़ाक की वस्तु नही है, निरंतर जीवन की इच्छा न होने पर जीवन ही समाप्त हो जाएगा। याद है बुद्ध ने क्या कहा था? जन्म लेना ही हमारे सभी दुखों का कारण है और अगर जीवन की इच्छा न हो तो फिर जिया ही क्यूँ जाए? तुम अपने ही कृत्य पर विचार करो! तुम कहते हो के तुम एक देवता हो और श्राप ग्रस्त हो कर यक्ष का जीवन बिता रहे हो, एक देवता हो कर भी तुम्हे अपने निहित स्वार्थ के लिए अन्य जीवों की हत्या करने में ज़रा भी हिचकिचाहट नही! मेरे भाइयों को ही देखो; वे बुद्धिमान और शक्तिशाली हैं परन्तु तुम्हे परास्त करने की बजाये उन्होंने अपनी प्यास को तरजीह दी; अगर ये आश्चर्यजनक नही तो फिर क्या है?

यक्ष तुम्हे यक़ीन न होगा लेकिन पमेश्वर का विचार ही सबसे विस्मित करने वाली बात है? ईश्वर, मात्र एक अवधारणा है, योरोपीय क्लासिकल चित्रकारों की तरह बेहतरीन नाक, सर्वश्रेष्ठ होंठ, सर्वश्रेष्ठ आँखों आदि मिला कर बनी एक तस्वीर जो बेहद ख़ूबसूरत अवश्य है लेकिन वास्तविक क़तई नही। ईश्वर मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ कल्पना का प्रक्षेपण है अर्थात मनुष्य के सभी अच्छे गुणों से निर्मित कृति और विडम्बना के दुर्गुण भी जुड़ गए हैं। यानी ईश्वर सर्वशक्तिशाली, सर्वज्ञानी इत्यादि तो है ही परन्तु वह ईर्ष्या, लालच, योजना और साजिश कर हत्या तक करने को प्रेरित एक परिकल्पना है। क्यों! भगवान की पुरूष फार्म ही संदिग्ध है आखिर हमारी मूल फार्म स्त्री है।

दरअसल बुद्धि का होना ही हमें संसार में हमारी वास्तविक स्थिति से भ्रमित कर देता है, ऐसा कोई भी संकेत नही के हम ऊँची जाती के मांसाहारी जंतुओं का आहार नही थे! संसार में ऐसा कोई भी संकेत नही के प्रक्रिति के नियमों के अतिरिक्त कोई अन्य शक्ति हमारी निरंतर 'Evolution' प्रक्रिया में हस्तक्षेप करती है ऐसी परिस्थिति में ईश्वर की कल्पना से विस्मयकारी और कोई चीज़ नही!

यक्ष, मै निश्चय ही ग़लत था! हम मांस के टुकड़े हैं, और कुछ भी नही। यही सत्य है ।

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3 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इस आलेख के लिए.

Kali Hawa said...

आभार आपका जनाब, तशरीफ़ लाने का

Anonymous said...

abhar..............................

Dawn

By Kali Hawa I heard a Bird In its rhythmic chatter Stitching the silence. This morning, I saw dew Still incomplete Its silver spilling over...