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मैंने जब यह फ़िल्म पहली बार देखी उस वक्त मैं छोटा सा बच्चा था और मुझे यह एक डरावनी फ़िल्म के तरह लगी बजाय एक गुज़रे हुए ज़माने की पतनशील सामंती व्यवस्था पर एक भावनात्मक लेकिन संवेदनशील कमेंटरी. फिल्म का ब्लैक एंड व्हाइट माध्यम इसके दबे हुवे षड़यंत्रपूर्ण कथानक के सर्वथा अनुकूल था तथा कहानी को पूर्ण तीव्रता से अनुभव करने के लिया अत्यन्त ही सार्थक भी. फ़िल्म की कहानी में आए अकष्मिक उतार चढ़ाव, घड़ी बाबू का स्क्रीन पर पागलपन से उत्प्रेरित उन्माद उस छोटे बच्चे के लिया हारर का सबब था. अब चूँकि कहानी की परिपक्वता और विचित्र घटनाओं का चक्र एक बच्चे के लिए समझना मुमकिन न था लिहाज़ा मेरे लिए वह एक डरावना अनुभव ही साबित हुआ. संवादओं की जटिलता, कहानी का धीमा बहाव और महिलाओं का ग्राफिक उत्पीडन मेरे लिए अच्छा अनुभव न था, नतीज़तन फ़िल्म देखने के बाद जब मैं घर लौटा तो मुझे उन सभी पुरुषों से नफरत थी जो महिलाओं के साथ क्रूरता से पेश आते थे.लेकिन फ़िल्म का गहरा स्याह परिवेश, उसका दिल को चुने वाला संगीत मेरे लिया एक बहुत ही आत्मीय अनुभव रहा. इसलिए जब कुछ लोग कहते हैं के लता मंगेशकर का सबसे रूहानी गीत "कहीं दीप जले कहीं दिल....... " है तो मुझे ये कतई इनकार है. मेरे लिए रूहों का सबसे बहतरीन गीत गीता दत्त का "कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ ... ...." ही है.
3 comments:
ye film kai maynon mai bemisaal hai....iska ksa hua direction....or sanwaad behtreen
Meena kumaari ki adaakaari bhi sraahniy
इसमें ज़रा भी शक नही के साहिब बीबी औए गुलाम एक लैंडमार्क फ़िल्म थी. हैरत के जब इसे मैंने दूसरी दफा देखा तो वह एक दूसरी फ़िल्म की तरह मानस में अंकित हो गई न के पहली बार की स्मृति पर सुपर-इम्पोसे.
"ya you are right, I also seen it in my childhood and cant understand properly, one thing only I felt at that time that Meena Kumaree was mudered. But I have seen it again when grown up and than i was able to understand the story. It is one of my favt film now"
Regards
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