Thursday, October 02, 2008

फिर क्या शंकर विफल नही रहे..........

! उपसंहार !

मुझे ईश्वर में क़तई आस्था नही है लेकिन फिर भी कई बार तीर्थ स्थानों की यात्रा करनी पड़ती है। दरअसल हम पैदा ज़रूर आज़ाद होते हैं लेकिन उसके बाद हर तरह की बंदिशें झेलनी पड़ती हैं और यही कारण था के कुछ वर्ष पुर्व मुझे केदारनाथ की यात्रा पर जाना पड़ा। मेरे लिए तो यह एक अच्छा 'एडवेंचर' रहा। मन्दिर वाक़ई एक बहुत ही खूबसूरत स्थान पर स्थित है और ८- से १० घंटे की कठिन चढाई के पश्चात वहाँ पहुंचना सहमुच ही अनूठा अनुभव है। वहां पहुँच कर मुझे एक अजीब ही नज़ारा दिखा। लोग पौ फटते ही गौरीकुंड* से केदारनाथ की कठिन यात्रा पर निकल पड़ते हैं। वे अपनी कमजोरियों पर विजय पाकर साहसपूर्वक ८- १० घंटे बाद केदारनाथ पहुँचते हैं। थक के चूर वे जल्द ही दर्शन की चिंता में डूब जाते और वक्त इसी सोच में बिता जल्द ही सो जाते। अगले दिन फिर सुबह ही वे मन्दिर में दर्शन के लिए लाइन में लग जाते। वे क्षुद्र बातों पर लाइन में अपनी स्थिति के लिए झगड़ते, प्रबंधकों को गालियाँ देते और धक्का-मुक्की कर मन्दिर में प्रवेश करते। किसी प्रकार जब वे पूजा अर्चना से निवृत हो कर बहार आते तो उन्हें वापस जाने की चिंता सताने लगती। रास्ता लंबा है इसलिए वे आनन-फानन गौरीकुंड के लिए रवाना हो जाते ताकि शाम ढलने से पहले वहाँ पहुँच जाएँ। इस आपा-धापी में वे केदारनाथ के जादुई तिलिस्म से वे पूरी तरह नावाकिफ़ रह जाते हैं।

लेकिन शायद पहले ऐसा न था। लोगों किसी शेडयूल के तहत यात्रा नही करते थे, न ही उन्हें घर वापस पहुँचने की जल्दी रहती इसलिए वे केदारनाथ के तिलिस्मी भौगोलिक स्थिति का वास्तविक आनंद उठाने में सक्षम रहते होंगे । इस लिहाज़ से देखा जाए तो वाकई शंकर पहले तो सफल रहे लेकिन आज के सन्दर्भ में पूर्ण रूप से विफल.....................

काली हवा

*गौरीकुंड से केदारनाथ १४ किलोमीटर का पैदल रास्ता है।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाँ शंकर अनेक मामलों में सफल नहीं रहे। उन में चारों मठों की स्थापना भी है।

Kali Hawa said...

उन में चारों मठों की स्थापना भी!

किस प्रकार?

Dawn

By Kali Hawa I heard a Bird In its rhythmic chatter Stitching the silence. This morning, I saw dew Still incomplete Its silver spilling over...