Tuesday, June 07, 2011

आरसी

 
इस  बार  में  कुछ  भी  खुशनुमा  नहीं  था 
बदरंग, मैला कुचैला  चौकोर  कमरा 
हर  शै  दबे  रंगों  में  डूबी  थी 
बोरियत  की  गहरी  चादर  से  ढका 
वहाँ  वक़्त  भी  घिसटने  पर  मजबूर  था 
बार  दीवार  से  सट  कर 
कमरे  की  तीन -चौथाई  लम्बाई  तक  था
सामने , दीवार  के  छोर  से  ज़रा  हट  कर
तरह  तरह  की  शराबें 
अपनी   अपनी  जगह   झिलमिला  रही   थी
दीवार  और  कैबिनेट  के  दरमियान

जो   फासला   था 
वहाँ  एक  आईना  लगा  था
वह  भी  अपनी  पॉलिश  खो  चुका  था
चिटका  हुआ  था
ऊपर  बाईं  तरफ  मानो  किसी  ने  गोली  दाग़ी  हो 
फिर  वह  चिटक  गया 
बालों  के  बे-तरतीब  दायरे 
उस  जगह  के  इर्द  गिर्द 
साथ  ही  सीधी  लकीरें  भी  radiate हो  रही  थी 
कुल  मिला  कर  वह  एक  मकड़ी  का  जाल  नज़र  आ रहा  था
आईने  के  ठीक  सामने  बैठा  वह
उकताया  शख्स 
सामने  भरा  जाम  उसने  छुआ  तक  नहीं  था
गहरी  नज़रों  से  आईना  तकते  तकते
उस  धुंधले  अक्स  में 
वह  अपना  चेहरा  तलाश  रहा  था 
बारटेंडर  बार  के  दूसरे  छोर  पर 
कोहनियाँ  बार  पे  टिका, हथेलियों  पर  सर  थामे 
जो  गिने  चुने  लोग  उस  बार  में  थे 
उन्हें  अलसाया  सा  देख  रहा  था
कुछ  देर  बाद  उस  शख्स  को  लगा
वह  जाला  जो  आईने  पर  था
उठा  और  उसके  सर  से  लिपट  गया
अब  अक्स  बेहतर  नज़र  आने  लगा  
उसने  देखा  एक  अजनबी 
गाम  गाम  उसकी  तरफ  चला  आ  रहा  था
हर  क़दम  उसका  क़द  बढ़ता 
तेवर  खौफनाक  होते  जाते 
हडबडा  कर  उसने  अपनी  ज़ेब  टटोली 
पिस्तौल  निकाल  गोली  दाग़  दी 

यकायक  उसके  ख़यालों  का  तांता  टूट  गया
Judge खीज  कर  पूछ  रहा  था
शायद  दूसरी  मर्तबा 
'तुमने  बारटेंडर  को  गोली  क्यूँ  मारी?'
उसने  कहा,
'चूंके  आईने  में  जाला  था!'

No comments:

Dawn

By Kali Hawa I heard a Bird In its rhythmic chatter Stitching the silence. This morning, I saw dew Still incomplete Its silver spilling over...