वो बदरंग मटमैला पहाड़ था, न कहीं घास थी ना कोई दरख्त । तलहटी में उसके एक बड़ा सुराख, इंसानों का बनाया हुआ। जब मैं अंदर दाखिल हुआ तो हैरान रह गया, अंदर ज़बरदस्त हलचल थी।सैकड़ों अफ़राद काम में जुटे थे, हर तरफ बांस के स्ट्रक्चर और खुदाई का साज़ ओ सामान बिखरा था। लेकिन गुफा के एक कोने शीशे का आलीशान हाल था, कान्फ्रन्स हॉल और वहाँ तमाम लोग सूट-बूट में घूम रहे थे बातें कर रहे थे । वहाँ मेरी मुलाकात हुई एक कोरियाई बिसनेस मैन से हुई । यूं तो वो ख़ुश नज़र आ रहा था लेकिन ये भी ज़ाहिर हो रहा था कि वह किसी कश्मकश से गुज़र रहा है । किसी अनहोनी का अंदेशा हवा में तैर रहा था । दरमियान हमारे कोई गुफ्तगु नहीं थी फिर भी बात हो रही थी। जान पड़ा के वो और उसका एक अमरीकी साथी चीन से साज-ओ-सामान खरीदते और मुनाफ़े में बेच देते । एक बुरा दौर आया, दोनों के दरमियान खटास पैदा हो गई, बिज़नेस भी बिखरने लगा ।
फिर हम दोनों हॉल के बाहर आ गए, गुफा के अंदरी कोने पर संकरी सुरंग का मुहाना था। सबसे ज्यादा काम वही हो रहा था, कोरियाई ने बताया चीन एक अंडरग्राउंड मोटरवे बन रहा है। सरहद के पार उसका ज़िम्मे का काम कब पूरा हो चुका था बस यहीं का हिस्सा बनाना बाकी था। इसी वजह से काम ज़ोर शोर से ज़ारी था ताकि मोटरवे को जल्दी से जल्दी शुरू किया जा सके।
मैं उल्टे पांव हॉल में चला आया। हाल तक़रीबन ख़ाली हो गया था। कोरियन के स्टॉल पर देखा तो काठ हो गया। टेबल पर कोरियाई पस्त पड़ा था, ढुलमुल और बे-जान, जबीं पर उसके छोटा सुरख, हाथ में, जो टेबल से नीचे लटका हुआ था, एक पिस्टल थी ।
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