Wednesday, October 08, 2008

बाबर

[हुमायूं जब मृत्युशय्या पर पड़ा था, बाबर ने उसकी तीन बार परिक्रमा की और अल्लाह से प्रार्थना की के वह हुमायूं की ज़िन्दगी बख्स दे चाहे बदले में उसकी ज़िन्दगी ले ले। फिर ऐसा ही हुआ, हुमायूं तो ठीक हो गया लेकिन बाबर शीघ्र ही बीमार हो कर चल बसा। जब मैं पांचवीं या फिर छठी कक्षा में था तब ये कथा हमारी किताब में थी। यही कहानी मैंने कई मर्तबा अन्य जगह भी पढ़ी है लेकिन शायद ऐसा नही हुआ। तो फिर क्या हुआ था?]

अब अत्यंत ही दुर्बल, हड्डियों का एक बंडल, पतली सूखी झुर्रीदार त्वचा में लिपटा हुमायूं तेजी से अंत की ओर फिसल रहा था। बाबर सभी उपाय कर चुका था, श्रेष्ठतम हकीमों और वैद्यों का इलाज कुछ भी काम नही कर रहा था अंततः क्रोधित हो उसने हकीमों और वैद्यों की काल कोठरी में डाल दिया। यह पहला अवसर था जब बाबर ने अपने आप को पुरी तरह असहाय महसूस किया। दरअसल बाबर के लिए यह पहला मौका था जब वह किसी समस्या से एकदम बेबस हो गया था, अन्यथा वह सम्पुर्ण रूप से स्वयं सिद्ध पुरूष था, एक शक्तिशाली सम्राट जिसने अपनी विलक्षण बुद्धि के कुशल उपयोग और ताक़त के बल पर एक विशाल राज्य की स्थापना की। उसे किसी के सामने झुकने की ज़रूरत कभी नही पड़ी क्यूंकि वह सब कुछ अपने बलबूते ही प्राप्त करने की हैसियत रखता था। विजय कभी भी उसके लिए अति आनंद का विषय नही रही, मात्र सही तकनीक और बल के उचित उपयोग का तर्क पूर्ण नतीजा और उसी तरह पराजय भी विषाद का सबब न बन सकी। लेकिन अब, जब कुछ भी काम न आया और उसके अत्यन्त ही नजदीकी और विश्वसनीय सलाहकारों ने अल्लाह से प्रार्थना करने की बात कही तो वह हतप्रभ रह गया। अपने प्राण से प्रिय पुत्र को मृत्यु की और अपरिवर्तनीय रूप से फिसलता देख वह असहाय हो गया था और अंततः अल्लाह से विनती करने को तत्पर हो गया।

हुमायु की शय्या की तीन परिक्रमा कर, वह घुटनों के बल झुक गया और कहने लगा, "अल्लाह सर्वशक्तिमान, मेरे बेटे को जीवन दान दे दे चाहे तो मेरी जान ले ले।" उसके अन्दर मौजूद सौदेबाज अब भी सक्रिय था।
निराश और थका, जल्द ही वह पस्त हो बेहोश हो गया। कुछ समय पश्चात् उसे एक आवाज़ सुनाई दी, "तुम अल्लाह को अपने बेटे की बीमारी का सबब क्यूँ बनाते हो? क्यों तुम इसे इतना जटिल बना रहे हो? घटनाओं का बेवजह होना क्या उन्हें समझने का आसान तरीका नहीं?"


शेष कल ........

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