Monday, October 06, 2008

धर्म!

हर धर्म मेरे लिए विरोधाभास की इन्तेहा है. मेरी नज़र में हिंदू धर्मं या फिर जिस भी नाम से वे इसे पुकारते हैं एक कबीलाई धर्म है. मुझे `हनुमान' में या फिर किसी अफ्रीकी देवता में कोई अन्तर नही सूझता सिवाय इसके के 'हनुमान' सिल्क की वस्त्र और कुछ सुवर्ण आभूषणों में से सुसज्जित हैं. यही बात अन्य देवताओं पर भी लागू होती है जैसे नाग, हाथी, चील, मूषक, मोर इत्यादि इसके साथ ही साथ कई मुंह, हाथ वाले 'mutants' भी हिंदू देवताओं की सूची में बढ़ चढ़ कर शामिल हैं. दरअसल एक हिंदू अपने रीति रिवाजों की भव्यता और चकाचौंध से भ्रमित हो इन्हे ही धर्म की महानता समझ लेता है. कुछ लोग कह सकते हैं की हिदू धर्म इन रीति रिवाजों से परे वेदांत, संख्या जैसा दर्शन भी है लेकिन क्या इनका कोई व्यावहारिक महत्व है? एक बार मुझे एक १२ वीं कक्षा के अध्यापक, जो अपने आप को प्रोफेसर कहते थे, ने कहा, " हिंदू धर्म का उच्च बिन्दु यज्ञ है." मैंने कहा, " श्रीमान, यज्ञ का मुख्य उधेश्य बलि है जो की ईश्वर की परिभाषा से किसी भी सूरत में मेल नही खाता."

यूँ तो बौध धर्म की शुरआत काफी आशाजनक रूप में हुई लेकिन शीघ्र ही वह भी हिदू धर्म की तरह कर्म-काण्ड के माया जाल में फंस गया और अब लगभग फार्म और चरित्र में उसकी तरह ही रह गया है. इसाई और यहूदी धर्म भी मसखरेपन की इन्तेहा ही हैं लेकिन इधर कुछ समय से वे धर्म से कई विषाक्त परम्पराओं की तिलंज्जली देने में समर्थ हुए है. लेकिन इन सब से अलग इस्लाम तो भयभीत करने वाला है.

3 comments:

Arvind Mishra said...

यह तो माईक्रो पोस्ट हुयी पर फिर भी आपकी सोच का जायका तो मिल ही गया -सही हैं आप !

Kali Hawa said...

श्रीमान, फास्ट फ़ूड के ज़माने में किस के पास वक्त है?

दिनेशराय द्विवेदी said...

विचार और विज्ञान इतना आगे आ गए हैं कि धर्म अप्रासंगिक हो गया है।

मूल्यांकन

 मुझे ट्रैन का सफ़र पसंद है, सस्ता तो है ही अक्सर ही दिलचस्प वाक़िये भी पेश आ जाते हैं। हवाई सफर महंगा, उबाऊ और snobbery से भरा होता है , हर क...