Saturday, September 27, 2008

किम आश्चर्यम ! ! ! !

( महाभारत का यह बेहद ही नाटकीय हिस्सा है, मैंने इस एक नया अर्थ देने की कोशिश की है)

यक्ष - रुको! मेरे सवालों के जवाब दिए बिना तुम पानी नहीं पी सकते ?

युधिष्ठिर - क्यूँ भला? तुम कौन हो?

यक्ष - युधिष्ठिर मेरे सवालों का जवाब दो, वरना तुम भी अपने भाइयों की तरह मारे जाओगे!

युधिष्ठिर - तुम कौन हो और तुम मेरा नाम कैसे जानते हो? मेरे भाई! वे तो सिर्फ़ थक गए हैं और आराम कर रहे हैं मरे नहीं हैं।

यक्ष - ओह! वे सब निश्चित ही मर चुके हैं और मैं उनकी मौत के लिए जिम्मेदार हूँ। मैं बहुत अच्छी तरह तुम्हे और तुम्हारे भाइयों को जानता हूँ। मैं एक यक्ष हूँ और इस झील का स्वामी। तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात सुनने से इनकार कर दिया और दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा। दरअसल मैं एक देवता हूँ जब तक मैं कुछ प्रश्नों के उत्तर नही खोज लेता यक्ष की तरह जीने को मजबूर हूँ। आप अपने सभी भाइयों के बीच में बुद्धिमान हैं और आसानी से मेरे सवालों का जवाब दे सकते हैं।

युधिष्ठिर - तब तो मुझे तुम्हारे प्रश्नों का क़तई जवाब नही देना चाहिए। कुछ भी हो मै अत्यधिक प्यासा हूँ, मुझे पानी पीने दो, शायद फिर मै तुम्हारे सवालों का जवाब दे दूँ!

यक्ष - नहीं युधिष्ठिर! पहले जवाब दो.

युधिष्ठिर - ओह ठीक है, पूछो!

यक्ष - हवा से भी तेज गतिमान क्या है?

युधिष्ठिर - चूंकि आपका प्रश्न व्यापक है इसलिए मूर्त और अमूर्त सभी शामिल हैं. कल्पना की उड़ान वायु तेज है।

यक्ष - सागर से भी गहरा क्या है?

युधिष्ठिर - विचार ! इसमें कोई दुविधा नही होनी चाहिए।

यक्ष - पहाड़ों से बड़ा?

युधिष्ठिर - कई चीजें हैं जैसे लालच, इच्छा, ईर्ष्या और अन्य भावनाओं।

यक्ष - लेकिन आश्चर्य क्या है?

युधिष्ठिर - ओह! याद आया कई हज़ार वर्ष पूर्व मैंने तुम्हे कहा था के मृत्यु की निश्चितता जानते हुए भी मनुष्य की अमरत्व की इच्छा ही सबसे अधिक विस्मित करने वाली बात है। यक्ष, मैं गलत था। दरअसल स्वाभविक सवालों का, विशेष रूप उन का जो परम्परागत ज्ञान से मेल खाते हों एक विशेष अंदाज़ में जवाब देना जिसकी हम अवचेतन में उम्मीद करते हैं, बहुत ही प्रभावशाली लगता है; नतीजतन ऐसा उत्तर किसी भी गंभीर समीक्षा के परे निकल जाता है। तुम देख सकते हो के मेरा जवाब इस दौरान गुज़रे हजारों वर्ष तक मनुष्य की जांच का सबब न बन सका।


To be Contd. बाकी कल के ब्लॉग में

स्टील का दरख्त

यहाँ एक बूढा दरख्त हुआ करता था,
रस्सी से बंधा तख्ता झूला बन जाता
बारिश थमने पर बचों का झुण्ड चला आता
वे खेलते, झूलते और झगड़ते
यहाँ तक के कमीजें फट जाती
अब ऐसा नही है
शीशे का आलीशान फ़रोख्त का स्टोर है
बच्चे भी आते हैं और झगड़ते हैं
पर अब कमीजें नही फटती,
बहस होती है
बात बढ़ जाने पर माँ बाप झगड़ते हैं
उसके बाद उनके वकील जिरह करते हैं
सौंप, बिच्छू और मेंढक नही हैं
साबुन से धुले कुत्ते हैं
लोहे के पिंजरे मैं एक दरख्त भी है
वो दरख्त एकदम सीधा उठ रहा है
और उसके फूल-पत्ते शायद गेंदनुमा होंगे
दूर से वो लोलीपॉप जैसा नज़र आयेगा
शायद सबसे अच्छे दरख्त का क्लोन
एक स्टील का दरख्त!
पर मुझे फिर भी जाने क्यूँ
कुदरत का वो बेढब दरख्त याद आता है

काली हवा

मूल्यांकन

 मुझे ट्रैन का सफ़र पसंद है, सस्ता तो है ही अक्सर ही दिलचस्प वाक़िये भी पेश आ जाते हैं। हवाई सफर महंगा, उबाऊ और snobbery से भरा होता है , हर क...