Friday, June 07, 2024

बोधिसत्त्व : श्रावस्ती पर एक और कथा

 प्राचीन नगर श्रावस्ती वाणिज्य का प्रमुख केंद्र था, हर तरह कि वस्तुओं के बाजार (हिन्दी शब्द क्या है- हाट ?) थे, श्रमणों, व्यापारियों, कलाकारों, विचारकों इत्यादि का आना जाना लगा रहता था। नृत्य, संगीत की सभाएं और दर्शन पर वाद-विवाद होते रहते थे। पश्चिम दिशा से आने वालों को नगर के प्रवेश से पहले एक गहन जंगल पार करना पड़ता था जहां हिंसक जानवर और डाकुओं का भय रहता था। नगर में काली हवा नाम का अकिंचन व्यक्ति रहता था । दरिद्रता से काली हवा का संसार से मोहभंग हो गया अतएव नगर से उक्ता कर वह वानप्रस्थ के लिए तत्पर हो गया। कपाल के केश और दाढ़ी बढ़ जाने से वह किसी मुनिवर कि तरह प्रतीत होते थे। एक पोटली में कुछ अति आवश्यक वस्तुएं, ईश्वर की सूक्ष्म मूर्ति, अगरबत्ती इत्यादि लेकर वह पश्चिम दिशा को प्रस्थान कर गए। 

नगर प्राचीर पर्यंत ही जंगल प्रारंभ हो गया। ज्यों ज्यों वह बढ़ते गए जंगल गहन होता गया। साँझ होने तक वे थक कर निढाल हो गया परंतु प्रसन्नता कि बात थी के उन्हें वहाँ एक कल कल निरझर जल से बहता नाला दिखा और पास ही विशाल वृक्ष। आस पास हर प्रकार के जंगली फलों के वृक्ष थे साथ ही काली हवा को जड़ी बूटी का भी ज्ञान था अतः यह स्थान ध्यान के लिए उपयुक्त है सोच कर उन्होंने विचार किया यहीं रुक जाता हूँ । 

इस बात से पूर्णतः अनजान के यह विशाल तरु एक विस्तृत वानर परिवार का आवास है, उसने तने के समीप एक भूभाग को साफ किया और वहीं चादर बिछा कर सो गया। वानरों का मुखिया, सुमंत नाम का बलिष्ठ वानर था, सुमंत ही बोधिसत्त्व था। वानर स्वभाव से ही चंचल होते हैं अतः उस वृक्ष के नीचे एक सर्वथा अपरिचित व्यक्ति को देख अचरज में पड़ गए। प्रातः होते ही उन्होंने काली हवा पर अधखाए फल, गुठलियाँ फेंकना प्रारंभ कर दिया। काली हवा ने अपने ऊपर गिरती गुठलियाँ इत्यादि देख कर चहुं ओर दृष्टि डाली, वानरों को देख अपनी परिस्थिति की नाजुकता का एहसास हुआ। उसने सोच ये वानर कुछ देर शरारत करेंगे फिर अपने रास्ते चल देंगें। अतः वानरों पर अधिक समय नष्ट करना मूर्खता होगी सोच कर उन्हें अनदेखा करने का विचार किया। इस तरह कुछ दिन बीत गया, वह सुबह उठ कर प्रतिदिन नित्य क्रिया से निपट कर स्नान करता, कंद मूल ढूंढ कर क्षुधा शांत करता और ध्यान पर बैठ जाता। उधर वानरों को उसका अपने निवास का अतिक्रमण बिल्कुल भी पसंद नहीं आया उन्हें विचार था कि यह साधु एक दो दिन बाद चला जाएगा लेकिन जब नहीं गया तो उनका उत्पात और बढ़ गया। सुमंत ने अपने साथियों को समझने कि कोशिश की कि साधु को अपने हाल पर छोड़ दो, उसके वहाँ रहने से वानरों को कुछ भी अंतर नहीं पड़ता, लेकिन वह जानता था उसका परामर्श व्यर्थ है, वह वानरों का स्वभाव नहीं बदल सकता। सप्ताह भर बाद टकराव कि स्थति या गई, काली हवा समझ गया के ये वानर जाने वाले नहीं और वानरों का उसे निष्कासित करने निश्चय भी नहीं डिगा। उधर सुमंत किसी अनहोनी के संशय में पड़ गया। अगली सुबह काली हवा ने ध्यान लगाने का विचार त्याग दिया तभी उसे एक उपाय सूझा, वह जंगल से कुछ पत्तियां, जड़ी और फूल लेकर लौटा, जड़ी पीस कर उसने लाल रंग बनाया, ईश्वर कि मूर्ति स्थापित कर चारों तरफ लाल रंग कि रंगोली बनाई, फूल मूर्ति पर चढ़ाए, पत्ते अपने जल भरे लोटे में डाल दिए। सभी वानर उसका यह नया क्रिया कलाप अचरज से देख रहे थे। उसने अगर बत्ती जलाई, उसकी सुगंध चारों दिशा फैल गई। अब वह जोर जोर से अगड़म बगड़म मंत्र पढ़ने लगा। हवा में एक तनाव कि स्थति पैदा हो गई, वानर किसी गंभीर संभावना के डर शांत हो गए। जब वह संतुष्ट हो गया कि समुचित तनाव पैदा हो गया है, तब उसने मूर्ति के सामने रखी लकड़ी उठाई उसका छोर लाल रंग से निपोड़ दिया और खड़ा हो गया । लकड़ी को उसने बंदूक कि तरह तान दिया और वानरों पर घूम घूम कर निशाना लगाने लगा जब लकड़ी सबसे पास के वानर पर तनी, वह रुक गया। हाथ में रखे लाल रंग को उसने पास के वानर पर फेंकते हुए, हथेली कि तीन उँगलियाँ उठाई और मेघ कि तरह गरजते हुए कहा, तीन दिन में तेरा काल निश्चित है। वानर जो अब तक स्तब्ध उसका उपक्रम देख रहे थे अब अलग अलग गुटों में बंट गए और दिनों से भिन्न, दबी उत्तेजना में बातें करने लगे लेकिन वह वानर जिसे काली हवा ने तीन दिन में काल ग्रसित होने का दावा किया था, अकेला, शांत बैठा   दिखा। सुमंत शीघ्र ही पाखंडी काली हवा का प्रपंच समझ गया, उसने व्यथित वानर को समझाने का अथक प्रयास किया लेकिन कोई सफलता नहीं मिली । इंगित वानर ने उसी समय खाना पीना छोड़ दिया, किसी भी क्रिया कलाप में हिस्सा नहीं लिया। उसकी दशा देख सुमंत बहुत चिंतित हो गया। अगले दिन ही वह वानर बीमार पड़ गया, उसका वज़न तेज़ी से घटने लगा। वानर अब काली हवा से दूर ही रहे कोई पास फटकने का साहस न कर सका। 

दूसरे दिन सुमंत काली हवा के सामने बैठ गया, कहने लगा, ‘हे काली हवा, मेरा नाम सुमंत है और मैं इन वानरों का अधिपति हूँ। मैं जानता हूँ जो तुमने किया वह पूर्णतः ढोंग था लेकिन ये भी ठीक है के वानरों का तुम पर उत्पात भी अनुचित था। अब जब, वानर तुम से दूर रहते हैं अतः तुमसे आग्रह है के उस वानर के प्राण न लो।‘

काली हवा: हे सुमंत, तुम ज्ञानी प्रतीत होते हो क्यों नहीं उस वानर को समझाते कि जो मैंने किया वह ढोंग था?

सुमंत : इसके दो कारण हैं। पहला तो ये कि अगर वह वानर इस बात से आश्वस्त हो जाए कि तुम्हारा किया आयोजन ढोंग था तो वानर फिर से उत्पात शुरू कर देंगे और मैं नहीं चाहता हमारे बीच कोई टकराव रहे, दूसरा कारण है कि उस वानर को आश्वस्त करना संभव नहीं । मेरा अनुग्रह  है के तुम फिर उसी तरह का चकाचौंध करने वाला तंत्र करो और दिखाओ के तुमने अपना श्राप वापस ले लिया है नहीं तो उस वानर कि मृत्यु निश्चित  है। 

काली हवा: सुमंत तुम सचमुच परम ज्ञानी हो, अत्यंत ही सुलझे मानस के स्वामी। उस वानर से कहो कल प्रातः ही मैं उसका श्राप वापस ले लूँगा।

अगले दिन सुबह सुमंत, श्रापित वानर को लेकर काली हवा के समक्ष प्रस्तुत हो गया तब काली हवा ने उस वानर से कहा, तुम नदी में स्नान करो फिर जंगल से एक सफेद पुष्प लेकर आओ, ध्यान रहे पुष्प पूर्ण हो कहीं कोई दोष न हो। तब काली हवा ने पहले कि तरह मूर्ति स्थापित की, फूलों से सज्जित कि और आम्र पत्र लोटे में भरे जल में डूबा दिए, अगरबत्ती जल दी। वानर के समक्ष वह वही अगड़म बगड़म मंत्र ज़ोरों से पढ़ने लगा, बार बार आम्र पत्रों से जल वानर पर छिड़कने लगा। अंततः  लकड़ी का छोर लाल रंग में लपोड़ा और इस बार लकड़ी की दिशा अपनी तरफ कर मुट्ठी भींच अपनी तरफ खींचते मानो किसी अदृश्य अस्त्र को खींच रहा हो, चिंघाड़ा , "दत्तः शापः प्रत्यर्पितो भवेत्" । फिर उसने मुंह से लाल रंग उगल दिया और जमीन पर मूर्छित गिर गया। सुमंत ने उसके मुख पर लोटे का जल छिड़क उसे उठाया, अब काली हवा प्रसन्न मुख से बोल, ‘जा अब तेरा कुछ नहीं होगा।‘ इस इस अतिरंजित स्वांग का समुचित प्रभाव पड़ा, श्रापित वानर अब आश्वस्त दिखा, एक राहत का असर मुख पर साफ दिखा। 

वहाँ से निकाल कर सुमंत ने अपने समूह से कहा, जब तक ये साधु यहाँ है हमें कहीं और चले जाना चाहिए, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।   

वानर प्रकरण इति !!



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