Thursday, December 18, 2025

रात 12 बजे चंडाखाल की सैर

चंद रोज़ क़बल मोहतरम मोनू साहिब की श्री बडोलगांव आमद हुई। जनाब 3 किलो मुर्गा लेकर हाज़िर हुए और फर्माइश की कि मुर्गा भड्डू मे ज़ेर-ए-आसमान पकाया जाय। जनाब से कोताही रह गई पारा पारा गोश्त फौरन ही फ्रिज के हवाले न किया नतीज़तन बू से सराबोर हो गया। जनाब-ए-काली हवा से इलतिज़ा की गई के साहिब फ़ैसला करें। साहिब-ए-इल्म कश्मकश मे आ गए, नाज़ुक मुक़ाम था, एक तरफ 3 किलो गोश्त ओ दूसरी जानिब सेहत का सवाल। दलील रही, गोश्त हर लिहाज़ से ताज़ा नज़र आता था सो जोखिम भरा फैसला रहा, काबिल ए इस्तेमाल है। भड्डू 3 किलो मुर्गे के लिए नाक़ाफी साबित हुआ लिहाज़ा जनाब सुदर्शन, जो उस रोज़ खानसामा के किरदार मे थे, गांव का बडा पतीला लाये और सियाह फ़लक तले धीमी ऑच मे मुर्गा पका।

एक बोतल कैंटीन की रम जो मियां सुदर्शन ने मुहय्या की थी, मोहतरम शुभाकर के एहतराम की एवज़ ख़ारिज- ए-इस्तेमाल रही। तब जनाब राजेश ने मैक्डावल न -1 लाने की पेशकश की जिसे फौरन ही मंज़ूर कर लिया गया।

जब मुर्गा फतह हो गया उसे भड्डू मे पनाह दी और उसी पतीले भात पकाया गया। मोनू साहिब उस जश्न की शाम या तो सनक गए थे या नशे मे थे, 5 किलो चावल पतीले के हवाले कर दिया, रोटी अलग बनी । कुल 13-14 अफराद खाने वाले थे सो खाना इफरात मे बना।

अब बारी शराब की थी उस का ज़िक्र भी लाज़मी है।

कुल पीने वाले 6 शख्स थे, खाकसार और शुभाकर के एलावा 4 अफराद। खाकसार और शुभाकर ने 1.5 पेग लिए एक और फर्द ने भी तक़रीबन इतना ही डकारा । पहले मैक्डावल फना हुई फिर रम की तबाही ।

रात के 11:30 बजे पार्टी तमाम हुई लेकिन ड्रामा बाक़ी था। हौग की तरह खाने के बाद 12 बजे रात हेमंत ने मुझे मोटरसाइकिल पर बैठ चंडाखाल चलने की दावत दी जिसे मैने बेहिचक मंज़ूर कर लिया।

जिस तरह मोटरसाइकिल लरज़ रही थी उससे खाकसार का कांफिडेंस डगमगा रहा था लेकिन जल्दी ही हेमंत ने आपा क़ाबू मे कर लिया और चाल मे जदीद रवानी आ गई। घाट पर हम रफ्तार मे थे हेडलाइट की रोशनी आडी तिरछी लकीरें बना रही थी। आगे एक खरगोश बेसाख्ता दौडा चला जा रहा था उस नादान को इल्म न था किनारे हट जाये। जब वह बदनसीब थक कर निढाल हो गया एक दूसरा हमशक्ल खरगोश हमे एस्कार्ट करने लगा । पानी की टंकी पर हेमंत ने पडाव डाल दिया।

वहां हम कोई आधा घंटा गुफ्तगू मे रहे, तमाम मुद्दों पर राय शुमारी हुई। ये एक बेमिसाल तजुर्बा रहा। रात के दूसरे पहर दसवीं के चांद की रोशनी पेड के पत्तों से छन कर जिस्म को मयनोश कर रही थी । ज़हन के एक गोशे मे गुलदार का खटका बना था और हेमंत अपनी रौ मे बके जा रहा था और मे किसी दूसरे आलम मे मदहोश था। जब मैने पूछा, तुम्हे यहां खौफ नहीं होता ? तब उसने कहा, वह अक्सर ही तन्हा यहां रात बे रात आ जाता है। सिद्धबाबा पर उसका कॉन्फिडेंस ताज्जुब से भरपूर था ।

जब हम लौट कर घर की तरफ चले खरगोश का सिलसिला फिर शुरू हो गया । गदन पार घर की तरफ मुड़ते हमने देखा वहां घास पर तीन बन्दे ज़मींदोज़ हैं। हमे देखकर उन्होने सिगरेट की गुजारिश की । ये तीन शख्स ग़ालिबन घर जाने से डर रहे थे ।

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रात 12 बजे चंडाखाल की सैर

चंद रोज़ क़बल मोहतरम मोनू साहिब की श्री बडोलगांव आमद हुई। जनाब 3 किलो मुर्गा लेकर हाज़िर हुए और फर्माइश की कि मुर्गा भड्डू मे ज़ेर-ए-आसमान प...