अक्सर ये दोनो लफ्ज़ पर्यायवाची की तरह इस्तेमाल होते हैं लेकिन सच्चाई यह है के इन दोनो शब्दों का अर्थ जुदा है। दिमाग़ हमारा मस्तिस्क यानी वह गूदा है जो हमे खोपडी में भरा है जबके ज़ेहन अमूर्त है, हमारा मानस। अगर कंप्यूटर का सादृश्य लें तो समझ लीजिये के दिमाग़ हार्ड-वेयेर है और ज़ेहन सॉफ्ट-वेयेर। दरअसल हम तमाम दुनिया की अपने ज़ेहन से व्याख्या करते हैं। हर चीज़ हमारी इन्द्रियों के ज़रिये ज़ेहन तक विद्युत् तरंगों द्वारा पहुँचती जहाँ ज़ेहन उनका विश्लेषण कर तय करता है की वह क्या है इत्यादि। लेकिन क्या इन्द्रियां वास्तविक हैं? दरअसल यह प्रक्रिया यानी इन्द्रियों द्वारा विद्युत् तरंगों का मानस तक पहुंचना और उसका मानस द्वारा विश्लेषण भी तो ज़ेहन का ही interpretation है। अगर इस तर्क और आगे ले जाए तो पाएंगे की हमारा ज़ेहन भी ज़ेहन का ही सृजन है। कहने का मतलब ये है की तमाम सृष्टि हमारे 'Mind' का ही 'Creation' है.
इस लिए अगर इस संसार को माया कहें तो क्या ग़लत है?
Monday, October 06, 2008
धर्म!
हर धर्म मेरे लिए विरोधाभास की इन्तेहा है. मेरी नज़र में हिंदू धर्मं या फिर जिस भी नाम से वे इसे पुकारते हैं एक कबीलाई धर्म है. मुझे `हनुमान' में या फिर किसी अफ्रीकी देवता में कोई अन्तर नही सूझता सिवाय इसके के 'हनुमान' सिल्क की वस्त्र और कुछ सुवर्ण आभूषणों में से सुसज्जित हैं. यही बात अन्य देवताओं पर भी लागू होती है जैसे नाग, हाथी, चील, मूषक, मोर इत्यादि इसके साथ ही साथ कई मुंह, हाथ वाले 'mutants' भी हिंदू देवताओं की सूची में बढ़ चढ़ कर शामिल हैं. दरअसल एक हिंदू अपने रीति रिवाजों की भव्यता और चकाचौंध से भ्रमित हो इन्हे ही धर्म की महानता समझ लेता है. कुछ लोग कह सकते हैं की हिदू धर्म इन रीति रिवाजों से परे वेदांत, संख्या जैसा दर्शन भी है लेकिन क्या इनका कोई व्यावहारिक महत्व है? एक बार मुझे एक १२ वीं कक्षा के अध्यापक, जो अपने आप को प्रोफेसर कहते थे, ने कहा, " हिंदू धर्म का उच्च बिन्दु यज्ञ है." मैंने कहा, " श्रीमान, यज्ञ का मुख्य उधेश्य बलि है जो की ईश्वर की परिभाषा से किसी भी सूरत में मेल नही खाता."
यूँ तो बौध धर्म की शुरआत काफी आशाजनक रूप में हुई लेकिन शीघ्र ही वह भी हिदू धर्म की तरह कर्म-काण्ड के माया जाल में फंस गया और अब लगभग फार्म और चरित्र में उसकी तरह ही रह गया है. इसाई और यहूदी धर्म भी मसखरेपन की इन्तेहा ही हैं लेकिन इधर कुछ समय से वे धर्म से कई विषाक्त परम्पराओं की तिलंज्जली देने में समर्थ हुए है. लेकिन इन सब से अलग इस्लाम तो भयभीत करने वाला है.
यूँ तो बौध धर्म की शुरआत काफी आशाजनक रूप में हुई लेकिन शीघ्र ही वह भी हिदू धर्म की तरह कर्म-काण्ड के माया जाल में फंस गया और अब लगभग फार्म और चरित्र में उसकी तरह ही रह गया है. इसाई और यहूदी धर्म भी मसखरेपन की इन्तेहा ही हैं लेकिन इधर कुछ समय से वे धर्म से कई विषाक्त परम्पराओं की तिलंज्जली देने में समर्थ हुए है. लेकिन इन सब से अलग इस्लाम तो भयभीत करने वाला है.
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मूल्यांकन
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