बीती विभावरी जाग री
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी
खग कुल कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल दोल रहा
लो लतिका भी भर लायी
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोयी है आली
आँखों में लिए विहाग री
--- जय शंकर प्रसाद
Tuesday, February 02, 2010
Subscribe to:
Comments (Atom)
अहंकार
कृष्ण गन्धवह बड़ा हुआ और पिता की आज्ञा ले कर देशाटन को निकल गया। मेधावी तो था ही शास्त्रार्थ में दिग्गजों को पराजित कर, अभिमान से भरा वह ...
-
प्राचीन काल में वितस्ता नदी के तट पर ऋषिवर मुंडकेश्वर, 5000 गाय सहित, एक विशाल आश्रम में रहते थे । अनेक ऋषि और सैकड़ों विद्यार्थी वहां रह ...
-
शिशिर कणों से लदी हुई कमली के भीगे हैं सब तार चलता है पश्चिम का मारुत ले कर शीतलता का भार भीग रहा है रजनी का वह सुंदर कोमल कबरी भाल अरुण किर...
-
सवाल उठता है की क्या समाज में नैतिक व्यवहार (ethical behavior) धर्म की वजह से है और अगर ऐसा है तो धर्म की आवश्यकता अपरिहार्य है अन्यथा धर्म ...