Tuesday, September 30, 2008

आखिर शंकर क्यों असफल रहे?

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[ हमारी सहज प्रकृति हमें कम से कम प्रतिरोध का रास्ता अख्तियार करने के लिए प्रेरित करती है और यही वजह है के अक्सर हम जीवन में कई अदभुद वक़ियात से वंचित रह जाते हैं। ये कोई पौराणिक गाथा नही है मात्र कल्पना की उड़ान है - काली हवा ]
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एक बार आदि शंकर अपने कुछ शिष्यों के साथ दूर हिमालय पर संक्षिप्त काल के लिए डेरा डाले थे। उनका निवास एक ऊंची पर्वत शिखर पर उफनती मंदाकिनी के किनारे स्थित था। वहाँ से उन्हें बर्फ से ढँकी हिमालय पर्वतमाला का अप्रितिम दृश्य बिना किसी बाधा के दिखता था। अब चूंके शंकर जन्म से जिज्ञाशु थे लिहाज़ा उनकी उत्सुकता एक दिन रंग लायी और उन्होंने निष्चय किया के वे मंदाकिनी के उदगम का पता लगायेंगे। तदनुसार वह अपने शिष्यों के साथ जरूरत का न्यूनतम समान लेकर मन्दाकिनी का मूल स्थान पता लगाने एक लंबी और कठिन यात्रा पर निकल पड़े। उन्होंने यात्रा नदी के किनारे किनारे चल कर शुरू की और मन्दाकिनी को अनेक विस्मयकारी रूपों में देखा। नदी कही सौम्य शांत भाव से बहती थी और कहीं उफनती, रौद्र शेरनी के तरह हिंसक हो जाती। ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा तब वे एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहाँ नदी के किनारे चलना सम्भव न था। यहाँ नदी दो विशाल चट्टानों के दरमियान बह रही थी मानो सदियों के बहाव ने उन चट्टानों को बीचोंबीच काट दिया हो। जब नदी के किनारे चलना सम्भव न दिखा तो शंकर ने तय किया के वे एक चक्करदार मार्ग से चट्टनों को पार कर नदी की किनारे पहुंचेंगे परन्तु ये काम आसान न था क्यूंकि चट्टान के चरों तरफ़ घना जंगल था। कोई और चारा न देख उन्होंने जंगल में प्रवेश किया। जंगल घना होने के कारण उनका आगे बढ़ना बहुत ही कठिन हो गया, जगह जगह उन्हें टहनियों को काटछांट कर आगे बढ़ना पड़ता था। काफी देर चलने के बाद वे अचानक एक खुले स्थान पर आ पहुंचे। यह एक विचित्र जगह थी एक बड़ा सा घेरा हरी मखमल से घास और चरों तरफ़ घना जंगल। खुले स्थान के बीचों बीच एक नाला बह रहा था जिसमें पानी शीशे की तरह पारदर्शी था। दल अब थक कर चूर हो गया था इसलिए शंकर ने उन्हें वहीं आराम करने को कहा। जल्द ही कुछ शिष्यों ने आसपास के वृक्षों से फल, कंद-मूल इत्यादि इकठ्ठा कर भोजन किया तथा नाले से पानी पीने के बाद वहीं विश्राम करने लगे। शंकर ने गौर किया के नाला के साथ साथ वे जंगल से आसानी से बाहर निकल सकते हैं। कुछ देर विश्राम के पश्चात जब वे प्रस्थान के लिए उठे तो उन्होंने अचरज से देखा के एक महाकाय रीछ ऐन नाले के साथ निकलने वाले रास्ते पर खड़ा है .............
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कहानी कुछ लम्बी हो गई है इसलिए शेष कल के ब्लॉग में .....

मूल्यांकन

 मुझे ट्रैन का सफ़र पसंद है, सस्ता तो है ही अक्सर ही दिलचस्प वाक़िये भी पेश आ जाते हैं। हवाई सफर महंगा, उबाऊ और snobbery से भरा होता है , हर क...