Thursday, October 26, 2023

मूल्यांकन

 मुझे ट्रैन का सफ़र पसंद है, सस्ता तो है ही अक्सर ही दिलचस्प वाक़िये भी पेश आ जाते हैं। हवाई सफर महंगा, उबाऊ और snobbery से भरा होता है , हर कोई अपने को तुर्रमखां से कम नहीं आंकता और अपने आप में ही दिलचस्पी रखता है । दिल्ली से बम्बई के लिए मैं राजधानी ट्रैन से ही जाता हूँ, यह साफसुथरी तो होती है, खाने-पीने का भी मुक़्क़मल इंतज़ाम रहता है लिहाज़ा सफर मज़े मज़े में निकल जाता है। इस मर्तबा मुझे अपनी उस ख़ास ट्रेन में टिकट नहीं मिला जो घर के पास के स्टेशन रूकती है सो इटारसी से होकर बम्बई जाने वाली राजधानी में सफर करना पड़ा। चूँकि ये ट्रैन लम्बे रास्ते से हो कर बम्बई जाती है इसलिए इसमें लम्बी दूरी के मुसाफिरों के बनिस्बत छोटी दूरी के मुसाफिरों की आवाजाही लगी रहती है। क़िस्मत से अभी पीक सीज़न नहीं है इसलिए ट्रैन में बहुत सी सीटें खाली थी सो पैर फैलाने का मौक़ा था।  मेरी बर्थ के बाजू एक झगड़ालु, अधेड़ उम्र व्यापारी था जो लगातार फ़ोन पर धंधे से मुत्तालिक़ बातें कर रहा था, एक हैंडबैग उसने बर्थ के बीच बने छोटे टेबल  पर रख दिया था जिससे उस टेबल को कोई और नहीं इस्तेमाल कर सकता था।  कुछ देर बाद वह बर्थ पर लम्बा हो गया और फ़ोन पर बातें करता रहा। इसी दौरान एक यंग लड़की आयी, उस व्यक्ति को देखा के वह उसके लिए बर्थ पर जगह बनाये लेकिन उस बद्तमीज़ ने कोई ध्यान नहीं दिया, लड़की ने बैग ऊपर की बर्थ पर रख दिया और फिर सैंडल उतार स्थाई तौर पर सीधे ऊपर चढ़ गई।  

तभी कैटरर सुपरवाइज़र आया और पूछने लगा कि यात्रीयों  को किस तरह का खाना चाहिए। मैंने कहा, 'वेज '। उसने पूछा, "नाश्ता?", मैंने कहा, "कटलेट"।

उसने उपेक्षा भाव से कहा, 'सर, केवल पोहा, उपमा या ऑमलेट।'

मुझे याद आया कि पिछली बार भी मुझे 'पोहा' लेने के लिए मज़बूर किया गया था।  मैं भड़क गया, 'तुम्हारा क्या मतलब है, मैं हमेशा कटलेट लेता हूं, तुम मेनू बदलने वाले कौन होते हो?'

उसने कुछ नहीं कहा और तुरंत ही चला गया। मेरी इस आक्रामकता का असर हुआ। झगड़ालू व्यापारी सहित सभी लोग मुझसे अदब से बात करने लगे। सौभाग्य से वह व्यापारी रात का खाना परोसे जाने से बाद लगभग 8:30 बजे ग्वालियर स्टेशन पर उतर गया। एक मुसीबत गई लेकिन दूसरा सेट आ गया। ग्वालियर में एक युवा जोड़े का परिवार आया, जिनके दो बच्चे थे, एक डेढ़ बरस का और दूसरा शिशु, उम्र में बमुश्किल एक साल का अंतर था। इधर मेरी बाजु वाली महिला सीट नीचे करने को बेताब हो रही थी और उधर हंगामा चल रहा था। वह बच्चा बहुत ही चंचल था, चीज़ें इधर उधर फेंकना, बैग खोलकर सामान निकालना वगैरह, रोकने पर ज़ोर ज़ोर से रोना, उसने अपनी मां को बदहाल कर दिया था, बेचारी इसे संभाले की गोद में बैठे शिशु को देखे। उसका पति सारी हलचल से बेखबर बुद्ध की तरह शांत दुनिया जहान से बेखबर बर्थ के दूसरे छोर पर बैठा रहा। रात का खाना खाने के बाद, मैं हाथ धोने चला गया, जब मैं लौटा तो मेरी तरफ की बर्थ नीचे आ चुकी थी। मैंने भी बिस्तर लगाया और सोने चला गया, समय रात के 9:30 बजे थे। लेकिन शांति नहीं थी वह शैतान बच्चा रोता ही जा रहा था, हंगामा बदस्तूर जारी रहा फिर लाइटें बंद कर दी गईं और धीरे-धीरे शांति छा गई।

आजकल अटेंडेंट डिब्बों को सबसे कम तापमान पर सेट करते हैं क्योंकि कोई न कोई ग्याडू हमेशा,गर्मी है, शिकायत करने आ जाता है। मुझे यह बहुत असुविधाजनक लगता है, शायद अधिकांश यात्रियों को असुविधा होती है लेकिन वे शिकायत नहीं करते । एक दो बार मैंने अटेंडेंट को  ब्लोअर की गति कम करने के लिए मजबूर किया, लेकिन अब मैं एक मोटी पूरी आस्तीन वाली टी-शर्ट रखता हूं, जिसे मैं अपनी नियमित टी-शर्ट के ऊपर पहनता हूं। यह डिब्बा भी पूरी तरह से ठंडा चल रहा था इसलिए मैं सुबह 4 बजे तक आराम से सोया, उसके बाद सुबह की चाय आने तक यूँ ही लेटा रहा। कैटरर ने मुझे जागते हुए देखा तो तुरंत चाय ले आया। मैं अभी भी 7:45 बजे बिस्तर पर ही था क्योंकि बाकी सभी लोग भी बिस्तर पर थे, कैटरर मेरे पास आया और फुसफुसाया, सर, आप कहां तक जाएंगे?

'बॉम्बे'

सर आपका नाश्ता ज़रा देर हो जाएगा, नासिक में कटलेट मिलेंगे।

अब, मुझे एहसास हुआ कि यह आदमी मुझसे क्यों पूछ रहा था कि मैं कहाँ उतरूँगा। अब तक मैं भी शांत चुका था इसलिए बेफिक्र हो बोला,

'कटलेट भूल जाओ, ऑमलेट ले आओ ।'

वह खुशी-खुशी चला गया.

लगभग 8:00 बजे सभी लोग उठ गए, बीच की बर्थ उठने लगी और उद्धंड बच्चा जाग गया। युवा दुल्हन को 3-6 महीने के शिशु के साथ-साथ इस अतिसक्रिय बच्चे की भी पूरी देखभाल करनी थी। उसका पति, बुद्धा की तरह शांत, इयरफोन कान में लगाए हुए अपनी पत्नी द्वारा झेली जा रही तकलीफों से बेखबर बर्थ के अंत बैठा रहा। जो युवा युवा महिला मेरे पास बैठी थी, उसने नवजात शिशु को उठाया, जिससे असहाय पत्नी को बड़ी राहत मिली। बर्थ के बीच मेज़ पर स्टील का गिलास पानी से आधा भरा हुआ था, इस बच्चे ने उसे गिरा दिया जिससे पानी फर्श पर फैल गया। मैं वहां चल रहे इस हंगामे से बेचैन हो रहा था, तभी मेरे बगल वाली लड़की ने कहा, 'आप अपना बैग उठा लो, गीला हो रहा है।'

मुझे एहसास हुआ कि मेरा शोल्डर बैग ठीक उस मेज के नीचे रखा हुआ था जहाँ इस बच्चे ने गिलास गिराया था। मैंने बिना एक भी शब्द कहे गुस्से भरी नजरों से उसकी ओर देखा और अपना बैग उठाया, बैग नीचे की तरफ से गीला था।

नासिक में, इस महिला ने अपने पति से बच्चों के लिए दूध लाने के लिए कहा। बुद्धा , बिना कुछ कहे, तुरंत नीचे उतर सेंटेड दूध की दो छोटी बोतलें ले आए। उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया, यह आदमी बुरा या उदासीन या मतलबी नहीं है, वह तो सिर्फ अपने परिवेश, अपने समाज की परंपरा का प्रोडक्ट है।  मैंने उससे कहा, 'तुम  एक बच्चे का ख्याल क्यों नहीं रखते, क्या देखते नहीं कि आपकी पत्नी कितना परेशान हो रही है ?'

इससे पहले कि वह कुछ कह पाता, उसकी पत्नी उसके बचाव में कूद पड़ी, 'वो बहुत मदद करते हैं'

अब गलती किसकी है, कहना कठिन है। जीवन बहुत ही कॉम्प्लेक्स है, आप केवल स्वयं का ही मूल्यांकन कर सकते हैं, किसी और का नहीं ।

मूल्यांकन

 मुझे ट्रैन का सफ़र पसंद है, सस्ता तो है ही अक्सर ही दिलचस्प वाक़िये भी पेश आ जाते हैं। हवाई सफर महंगा, उबाऊ और snobbery से भरा होता है , हर क...