Wednesday, October 15, 2008

सफ़ेद धुआं

इक अलसाई सर्दी की सुबह
जमुना में कोई हलचल ही नही
खिसकता था नभ में,पुल के ऊपर
सूर्य में कोई चमक ही नही

ज़मीं से कुछ ही ऊपर
टंगा था घना सफ़ेद धुआं
छिप गया था शहर का चेहरा
घिनौना था जो इसके बिना

मृत, नदी के किनारे पड़ा
लावारिस एक बच्चे का शेष
धुंध का शुक्र जो कफ़न दिया
हट के जाते थे बेखबर लोग

डूबा, उसने चोरी जो की
लगा के छलांग नदी में गहरी
सिक्के जो फेंके थे भक्तों ने
ईश्वर को रिझाने के लिए

ऊब रहे हैं फिर भी मगर
कर उपभोग, कर उपभोग
बहुतायत का है ज़ोर
खुश हैं मगर कुछ ही लोग

* * *

मूल्यांकन

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