बीती विभावरी जाग री
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी
खग कुल कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल दोल रहा
लो लतिका भी भर लायी
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोयी है आली
आँखों में लिए विहाग री
--- जय शंकर प्रसाद
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बोधिसत्त्व : श्रावस्ती पर एक और कथा
प्राचीन नगर श्रावस्ती वाणिज्य का प्रमुख केंद्र था, हर तरह कि वस्तुओं के बाजार (हिन्दी शब्द क्या है- हाट ?) थे, श्रमणों, व्यापारियों, कलाकार...
-
Sun lijiye fursat hai, phir kya ho khuda jaane? kab se haiN mere dil maiN, betaab kuch afsaane! Like everybody else I too always had a re...
-
शिशिर कणों से लदी हुई कमली के भीगे हैं सब तार चलता है पश्चिम का मारुत ले कर शीतलता का भार भीग रहा है रजनी का वह सुंदर कोमल कबरी भाल अरुण किर...
-
( महाभारत का यह बेहद ही नाटकीय हिस्सा है, मैंने इस एक नया अर्थ देने की कोशिश की है) यक्ष - रुको! मेरे सवालों के जवाब दिए बिना तुम पानी नहीं ...
No comments:
Post a Comment