Tuesday, October 28, 2008

अतियथार्थवाद

उन्नीसवीं शताब्दी के अंत पर जब एक थका हुआ सा Post- Impressionism आखिरी साँसें गिन रहा था, हेनरी मातिस की अगुवाई में एक क्रांतिकारी आन्दोलन 'फाओइज्म' योरोपीय चित्रकल में उभर कर आया (फाव का फ्रांसीसी भाषा में अर्थ जंगली जानवर होता है) यह आन्दोलन शुद्ध रंगों का उपयोग ओर फार्म का साहसिक विरूपण के लिए जाना जाता है. रंगों और फार्म का अनोखा इस्तेमाल जनता को चकाचौंध करने पूर्ण रूप से सफल रहा, किंतु इस से भी संतुष्ट न हो कर मार्सल ड्यूशेम्प एक कदम आगे बढ़ गए और दादाईज्म की शुरुआत कर लोगों की कला के विषय में पारंपरिक धारणा पर करार प्रहार किया. इन कलाकारों ने मूत्र पाट के साफ़ सफ़ेद दीवार के सम्मुख एक कलाकृति की तरह पेस किया. लेकिन, शुक्र है जनता की सदमे को सहने की क्षमता ज्यादा नही होती इसलिए जल्दी ही ये आन्दोलन छितर कर लुप्त हो गए। किंतु इस सब का एक फायदा यह हुआ के अन्य चित्रकार अब कला को अन्य रूपों में भी देखने लगे और जल्द ही शांत क्यूबिज्म, अमूर्त कला में Expressionism और रहस्य तथा स्वप्ना के मनिस्न्त फंतासी लिए अतियथार्थवाद अस्तित्व में आए।

सरिय्लिज्म अति यथार्थ है; रहस्य, समय की स्थिरता और स्वप्निल फंतासी है, आध्यात्मिक स्तर में कुछ सूफी मत के सदृश। अतियथार्थवाद जादू है और हमारी प्रकृति से मेल खाता है इसलिए कभी मंद नही पड़ता. अतियथार्थवाद की प्रतिनिधि कलाकृति सल्वाडोर डाली की 'Persistence of Memory' है लेकिन इसे हम कला के सभी माध्यमों में देख सकते हैं यह साहित्य में विद्यमान है तो छायाचित्रों में भी मिलेगा :



7 comments:

युग-विमर्श said...

प्रयास अच्छा है, किंतु चिंतन के गाम्भीर्य की मांग करता है, सरसरी दृष्टि की नहीं.

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

चित्रकला पर बोलना, सचमुच टेढी खीर.
पर मैं भारत हूँ स्वयं,इस फ़न का जो मीर.
जो इस फ़न का मीर,सँवारेगा वो चेहरा.
बिगङ गया अब पूरा भारत माँ का चेहरा.
कह साधक कवि,बिना जानकारी ना बोलना.
सचमुच टेढी खीर, चित्रकला पर बोलना.

Kali Hawa said...

मै कुछ समझा नही!
आप कहना क्या चाहते हैं?

डॉ. मनोज मिश्र said...

आप विषय को भलीभांति निरूपित नही कर सके हैं -पहले तो यह समझाना था कि यथार्थवाद क्या है फिर अतियथार्थ वाद को व्याखायित करना था -पूरा मामला सडियल है यानी surreal यानी सुपर रीयल ! फिर भी गंभीर चिंतन की और उत्प्रेरित करने के लिए शुक्रिया .

Kali Hawa said...

हैरत है! मुझे किसी को कुछ भी समझाने की क्षमता नही है. आलेख मात्र चस्पां तस्वीर की भूमिका भर है. अफ़सोस तस्वीर पर किसी ने भी तवज्जो नही दी!

Anonymous said...

Surrealism was a cultural movement by way of an artistic style. It used visual imagery from the subconscious mind to create art without the intention of logical comprehensibility. Although it was not Dali who began this movement, he became the best known exponent of this style. Is it in practice now?

Chander Badola, Delhi

Kali Hawa said...

I don't think Surrealism ever was some kind of imagery of subconscious mind, for it is not possible to know what is subconscious and create it with purpose on canvas. Surrealism works are deliberate creations of conscious fantasies.

मूल्यांकन

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