Thursday, October 23, 2008

प्रतिध्वनि!


हिन्दी ज़बान में मेरी दख़ल न के बराबर है फिर भी जितना इल्म है उस लिहाज़ से 'प्रति' उपसर्ग दो अर्थों में इस्तेमाल होता है, अंग्रेजी प्रीफिक्स 'per' और 'anti' के समकक्ष। उदाहरण के तौर पर प्रतिदिन, प्रतिशत और प्रतिवाद इत्यादि। बाकी़ पाठक अपना मत ज़ाहिर कर देंगे ऐसी उम्मीद है। प्रतिध्वनी में शायद यह 'anti' अर्थ में इस्तेमाल हुआ है जो कुछ अटपटा सा लगता है। उर्दू में तो प्रतिध्वनि के लिए कोई स्वतंत्र शब्द ही नही है।

यूँ तो प्रतिध्वनि किसी भी आवाज़ का प्रतिबिम्द है किंतु अध्यात्मिक धरातल पर वह अपनी ही अंतरात्मा की आवाज़ है। क्या हम इस आवाज़ को सुनते हैं? क्या है हमारी अंतःकरण की आवाज़? लालच, भय, सुख भोगने की लालसा और सबसे ज्यादा स्वयं को सुरक्षित रखने की इच्छा (Self preservation) इत्यादि हमारा मूल स्वभाव है इसके बिना शायद हमारा अस्तित्व ही न रहे। फिर छल कपट को अंतरात्मा की आवाज़ क्यों नही कहा जाता? अंतरात्मा की आवाज़ हमेशा ही सच्चाई और निःस्वार्थ त्याग के लिए जानी जाती है, आख़िर इसकी वजह क्या है!

3 comments:

seema gupta said...

फिर छल कपट को अंतरात्मा की आवाज़ क्यों नही कहा जाता? अंतरात्मा की आवाज़ हमेशा ही सच्चाई और निःस्वार्थ त्याग के लिए जानी जाती है, आख़िर इसकी वजह क्या है!
" kya baat khee hai, sach mey ye veecahr to kise ke bhee dil mey nahee aaya hoga, or aaya bhee hoga to dhyan nahee diya hog, or hum to sach mey hee soch mey pdh gyen hain.... agar apko isske vjeh ya jvab mile to pls jrur batana.."

Regards

Unknown said...

प्रतिध्वनि किसी ध्वनि की गूँज होती है. उर्दू में इसे बाज़गश्त कहते हैं. छल-कपट चुप-चाप किये जाते हैं. जो कार्य दूसरों की दृष्टि बचाकर किए जाते हैं उनकी अपनी कोई ध्वनि नहीं होती. न ही वे किसी अनुगूंज का परिणाम होते हैं. मनुष्य के भीतर 'सेल्फ' और 'नाट-सेल्फ' के दो 'सेल' होते हैं. स्वार्थ किसी भी बुरे काम के लिए प्रेरित करता है, आत्मा या 'नाट-सेल्फ' उससे रोकता है. इसे हम अंतर-आत्मा भी कहते हैं यानी ज़मीर या कान्शेंस. हमें इसी की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है.

Kali Hawa said...

बहुत खूब! अल्तमश साहिब, बहुत ही उम्दा विश्लेषण किया है आप ने.

बाज़गश्त कम ही इस्तेमाल होते देखा है

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