Wednesday, May 22, 2024

ख़ा'ब - 2

 मेरे हाथ में एक पारदर्शी कांच का चौकोर बॉक्स था और मैं सड़क के किनारे खड़ा था। कोई 40 गज पर चौराहा था, जिस तरफ मैं खड़ा था उसी तरफ चौराहे के ठीक पहले एक जर्जर मकान था । हर आने जाने वाले शख्स से मैं कहता ये बॉक्स उस जर्जर मकान तक पहुँचा दो । लेकिन वो मुझे देखते और फिर बॉक्स कि तरफ और यकायक ही खौफ से पीछे हट जाते । ये सिलसिला कुछ देर चला फिर मैंने देखा के बॉक्स में कुछ इंसानी हड्डियाँ हैं, मुझे महसूस हुआ वो मेरी ही हड्डियाँ हैं और मेरा कोई जिस्म ही नहीं । 

उस वक़्त मुझे ख़याल हुआ, 'मौत कि हक़ीक़त अगर मा'लूम हो जाए तो क्या कोई जी सकेगा ?'

    

फिर मैं उठ गया ।


ख़ा'ब

 वो बदरंग मटमैला पहाड़ था, न कहीं घास थी ना कोई दरख्त । तलहटी में उसके एक बड़ा सुराख, इंसानों का बनाया हुआ। जब मैं अंदर दाखिल हुआ तो हैरान रह गया, अंदर ज़बरदस्त हलचल थी।सैकड़ों अफ़राद काम में जुटे थे, हर तरफ बांस के स्ट्रक्चर और खुदाई का साज़ ओ सामान बिखरा था। लेकिन गुफा के एक कोने शीशे का आलीशान हाल था, कान्फ्रन्स हॉल और वहाँ तमाम लोग सूट-बूट में घूम रहे थे बातें कर रहे थे । वहाँ मेरी मुलाकात हुई एक कोरियाई बिसनेस मैन से हुई । यूं तो वो ख़ुश नज़र आ रहा था लेकिन ये भी ज़ाहिर हो रहा था कि वह किसी कश्मकश से गुज़र रहा है । किसी अनहोनी का अंदेशा हवा में तैर रहा था । दरमियान हमारे कोई गुफ्तगु नहीं थी फिर भी बात हो रही थी। जान पड़ा के वो और उसका एक अमरीकी साथी चीन से साज-ओ-सामान खरीदते और मुनाफ़े में बेच देते । एक बुरा दौर आया, दोनों के दरमियान खटास पैदा हो गई, बिज़नेस भी बिखरने लगा ।

फिर हम दोनों हॉल के बाहर आ गए, गुफा के अंदरी कोने पर संकरी सुरंग का मुहाना था। सबसे ज्यादा काम वही हो रहा था, कोरियाई ने बताया चीन एक अंडरग्राउंड मोटरवे बन रहा है। सरहद के पार उसका ज़िम्मे का काम कब पूरा हो चुका था बस यहीं का हिस्सा बनाना बाकी था। इसी वजह से काम ज़ोर शोर से ज़ारी था ताकि मोटरवे को जल्दी से जल्दी शुरू किया जा सके।

 हम फिर हाल में आ गए उस कोरियन के स्टॉल पर एक ग़ैर मुल्की फ़र्द जो गुस्से में भी था, ना-उम्मीद भी और बे-बस भी साफ मालुम पड़ता था वो बकाया रकम की खातिर वहां आया था । उसे देख बड़बड़ाने लगा, अपने बकाया पैसे की वसूली के लिए ज़ोर देने लगा। कोरियन ने फ़ौरन ही अपना ब्रीफकेस खोला और चेक उसका नाम लिख दिया। वो फ़र्द हैरान रह गया, पैसे इतने आसान से मिल जायेंगे इसकी उसे रत्ती भर उम्मीद ना थी ।

 उसी वक्त एक हंगामा सा उठा, अफ़रा तफरी का आलम छा गया लोग मुस्तैदी से हॉल के बाहर निकल गए मैं भी तेज़ क़दम हॉल के बाहर आ गया । एक अजीब नजारा था सुरंग के मुहाने जो बांस की स्केफोलडिंग थी उस पर एक अमरीकी फ़र्द लटका हुआ था। उसके जिस्म पर बारूद की सलाखें बंधी थी । वो बार-बार कह रहा था कोरियाई को बुलाओ। 

मैं उल्टे पांव हॉल में चला आया। हाल तक़रीबन ख़ाली हो गया था। कोरियन के स्टॉल पर देखा तो काठ हो गया। टेबल पर कोरियाई पस्त पड़ा था, ढुलमुल और बे-जान, जबीं पर उसके छोटा सुरख, हाथ में, जो टेबल से नीचे लटका हुआ था, एक पिस्टल थी ।

 उसी व्यक्त मेरी आँख खुल गई ।


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