कल
वह जो नीली आंखों वाला बादल
घूम रहा था
आसमान में बस्ता लेकर
कभी इधर कभी उधर
और हवा की उंगली पकडे
जूते मुंह से खोल रहा था
पीपल के पत्तों से जाने
किस भाषा में बोल रहा था
उस कहना कल फिर आए
मुझे छांव के गीत सुनाये
मई उसे लौलीपॉप दूंगा!
अज्ञात
Thursday, April 10, 2008
बूट !
जूते में वह बात कहाँ !
बूट का वह रुतबा कहाँ
उस में वह दम ख़म नही
तेज़ -ओ - तर्रार अदा कहाँ
मुलायम गोष्त पर जब पडता
है ख़ुद ब ख़ुद चमक उठता है
जूता अव्वल तो बदन पर उठता नही
जो उठा भी तो पिल -पिला हो जाता है
बूट पुराना नही होता फेंक दिया जाता है
जूते का नसीब घिस जाना है
सुराख़ होने तक रगड खाना है
अफ़सोस के 'चीन' के पास बूट है
मासूम 'तिब्बत' जूते पे रोता है !
काली हवा
बूट का वह रुतबा कहाँ
उस में वह दम ख़म नही
तेज़ -ओ - तर्रार अदा कहाँ
मुलायम गोष्त पर जब पडता
है ख़ुद ब ख़ुद चमक उठता है
जूता अव्वल तो बदन पर उठता नही
जो उठा भी तो पिल -पिला हो जाता है
बूट पुराना नही होता फेंक दिया जाता है
जूते का नसीब घिस जाना है
सुराख़ होने तक रगड खाना है
अफ़सोस के 'चीन' के पास बूट है
मासूम 'तिब्बत' जूते पे रोता है !
काली हवा
Subscribe to:
Posts (Atom)
दैत्य का उद्धार
प्राचीन काल में वितस्ता नदी के तट पर ऋषिवर मुंडकेश्वर, 5000 गाय सहित, एक विशाल आश्रम में रहते थे । अनेक ऋषि और सैकड़ों विद्यार्थी वहां रह ...
-
शिशिर कणों से लदी हुई कमली के भीगे हैं सब तार चलता है पश्चिम का मारुत ले कर शीतलता का भार भीग रहा है रजनी का वह सुंदर कोमल कबरी भाल अरुण किर...
-
प्राचीन नगर श्रावस्ती वाणिज्य का प्रमुख केंद्र था, हर तरह कि वस्तुओं के बाजार (हिन्दी शब्द क्या है- हाट ?) थे, श्रमणों, व्यापारियों, कलाकार...
-
इंसान बाज़-औक़ात शर्मिंदा हो जाता है ऐसी बातों से जिसमें उसका कोई कसूर नहीं होता मसलन लोग अपनी ग़रीबी पर ही शर्मिंदा महसूस करते हैं जब कोई अम...