Wednesday, December 03, 2008

फीनिक्स !


फीनिक्स ग्रीक गाथा का एक पौराणिक पक्षी है; सुंदर व चिरयुवा जो अपनी ही राख से पुनर्जीवित हो उठता है। दहसतगर्द फीनिक्स ही तो हैं आदर्शवादी , हौसले में पक्के और जितने मारो उतने नए खड़े हो जाते हैं। अक्सर समझदार व्यक्ति तर्क देते हैं के जब तक कारण समाप्त नही होता असर भी ख़तम नही होगा। तो क्या उग्रवादियों से समझौता कर शान्ति और सुरक्षा खरीद ली जाए ? इस तर्क में यह निष्कर्ष निहित है के उग्रवाद की जड़ के पीछे उचित कारण हैं।

क्या ऐसा वाक़ई है? सबसे पहले तो ये समझ लिया जाए के हम किसी आदर्श संसार में नही जी रहे हैं और लगभग सभी के साथ थोड़ा बहुत अन्याय होता रहा है इसलिए आतंकवाद का कोई भी सार्थक औचित्य नही है। आतंकवाद से समझौता उसके कारण को वैधता देने के बराबर है। तो फिर आतंकवाद से कैसे लड़ा जाए?

दरअसल इस में कोई संदेह नही के जितने भी आतंकवादी मारे जायेंगे उतने नए खड़े हो जायेंगे और यही हमारी अस्थायी नियति रहेगी। हम जितना हो सके अपने सुरक्षा प्रबंध चाक चौबंद करें और आतंकवाद से होने वाले नुक्सान को न्यूनतम करने की कोशिश करें। जल्द ही एक अस्थायी संतुलन कायम हो जाएगा जहाँ आतंक का साया तो रहेगा लेकिन उस से होना वाला नुकशान बर्दाश्त में रहेगा आखिर सड़क हादसों में भी तो लोगों जो जान जाती है।

देर सबेर 'law of diminishing return' के तहत आतंकवाद भी समाप्त हो जायेगा।

समझौता किसी सूरत में नही!

2 comments:

P.N. Subramanian said...

किसी भी मायने में दहशतगर्दी का औचित्य ना क़ाबिले बर्दाश्त. आभार.

Anonymous said...

What ya Mamaji......... You've started writing more and more in Hindi. Are you geting into one of your primeval modes. I am sure there are people out there like me who need some more English dope from you like before.Used this name as it was given by you in one of your suspense series in the good old English days.Remember? O ya... and for all my hindi blogger friends out there ardently following this blog as well, I am totally up for it. Blame it on our modern convents or whatever but I really wish my language skills were good enough to follow all the gyan.

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