Monday, December 01, 2008

प्रजातीय विकास और क्रोध


प्रजातीय विकास के संधर्भ में क्रोध कब विकसित हुआ होगा और हमारे संरक्षण सन्दर्भ में क्या इसका कोई उपयोग भी है? क्रोध का विकास कैसे हुआ होगा इसका तो आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है आख़िर किसी भी उकसावे की कोई तो भावनात्मक प्रतिक्रिया होनी चाहिए, क्रोध इसी का नतीज़ा है। क्रोध अति प्राचीन है, आधुनिक मानव के आगमन से भी पूर्व सभी 'primates' और अन्य जीव जो भावना प्रर्दशित करते हैं गुस्से का भी इज़हार करते है। क्रोध को गहराई से समझने के लिए जटिल विश्लेषण की क्षमता अनिवार्य है इसलिए जानवरों में इस का होना तो समझ में आता है लेकिन मनुष्यों में यह धीरे धीरे क्यूँ नही विलुप्त हो गया? आखिर क्रोध हमारी स्वयं को संरक्षित रख पाने के सामर्थ्य को घटता ही है बढाता नही है!

चूंके मनुष्य एक सफल प्रजाति है इस लिए समय और परिस्थिति के अनुसार वह अपने को इस तरह ढालता चला गया के उसके संरक्षित रहने की संभावना सबसे अधिक रहे इसलिए उसका क्रोध के सामने बेबस होना आसानी से समझ नही आता। यक़ीनन ही हमारे तेज़ तरर्रार दिमाग ने आसानी से विश्लेषित कर लिया होगा के क्रोध हमारे विकास में रूकावट है कोई सहूलियत नही। क्रोध तर्कसंगत विचार में रूकावट डालता है इसलिए उकसाए जाने पर सबसे बेहतर प्रतिक्रिया नही बता सकता ऐसी परिस्थिति में क्रमशः विकास के दौरान क्रोध का ह्रास हो जाना चाहिए था परन्तु ऐसा हुआ नही।


मुंबई में हुए आतंक के तहत क़त्ले आम एक उकसावा है, क्रोध से हम इसका सबसे बेहतर उतर शायद नही दे सकते।

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

सही कहा है! इसीलिये क्रोध को यमराज भी कहा गया है (क्रोधो वैवस्वतो राजा)

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