Tuesday, February 02, 2010

बीती विभावरी जाग री.....

बीती विभावरी जाग री
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी
खग कुल कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल दोल रहा
लो लतिका भी भर लायी
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोयी है आली
आँखों में लिए विहाग री

--- जय शंकर प्रसाद

अहंकार

 कृष्ण गन्धवह बड़ा हुआ और पिता की आज्ञा ले कर देशाटन  को निकल गया।  मेधावी तो था ही शास्त्रार्थ में दिग्गजों को पराजित कर, अभिमान से भरा  वह ...