Wednesday, May 07, 2008

बर्फ गिरती रही मेरे चेहरे पर

कुछ सोच कर मै उठा
चल दिया तनहा तनहा
चुप था दरख्तों का सिलसिला
बर्फ गिरती थी मेरे चेहरे पर

निहां भी और मुका़बिल भी
था भी नही भी इक अजनबी
करता था बातें कभी कभी
बर्फ गिरती थी मेरे चेहरे पर

पूछा जो मैंने तू कौन है
हंस के बोला, गौ़र से देख
नही कोई और तू ही तो है!
गिरती थी बर्फ मेरे चेहरे पर

ताहम, कुछ है अज़ीबो ग़रीब
क़िस्मत जो तेरी जिस्म ही नही
न तुझ को भूख न तिस्नगी
बर्फ मेरे चेहरे पर गिरती रही

हैरत से देखा उसने मुझे
तो क्या हुआ जो जिस्म ही नही
तुझ को भी तो ज़ायका़ नसीब
गिरना बर्फ का अब कम हुआ

बातों मी तेरी कुछ तो है
ये सवालात और गहराइयां
तस्व्वुफ़ ऐ ज़िंदगी कि अनुभूतियाँ
गिरना बर्फ का थम सा गाया



अभी बाकी़ है..........................





2 comments:

Keerti Vaidya said...

wah..bahut umda likha hai.......kho gayi apki kavita mein

Kali Hawa said...

shukriya

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