Wednesday, September 17, 2008

गौरय्या




गौरय्या जाने कहाँ फना हो गयी हैं
शायद मुझे देख कर निहां हो गयी हैं
इक वक़्त ऐसा था
हर सू इनका चर्चा था
आशिअना था हर रोशनदान
नीम, आम या फिर बरगद का पेड़
तन्हाई में भी रहता था कुछ शोर
भोर होते ही बढ़ता था जोर
सींक के टुकड़े और सूखी घास
बन जाता इतने में ही आवास
फ़िज़ा कुछ गर्म हो गयी है
गौरय्या जाने कहाँ खो गई है


---- काली हवा

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