Tuesday, September 23, 2008

ख़ाब चुन रही रात बेक़रार है ...............................

ख़ाब चुन रही रात बेक़रार है ...............................

ये शब्द फ़िल्म 'ख़मोशी ' के एक गाने से लिए गए हैं । हैरत के मुझे इन कि अहमियत का अंदाज़ पहले कभी नही हुआ यानी एक तिलिस्म कि तरह उत्सुकता और शब्दों में ख़ूबसूरती तो ज़रूर झलकती थी लेकिन गहरी साज़िश नज़र नही आती थी । दरअसल अगर शब्द होते "ख़ाब बुन रही है रात .............." तो फिर बात कुछ और ही होती यानी बुनना तो एक क्रिया है और उसमें एक अनिश्चितता है लेकिन चुनना? इसमें शरारत कि झलक है एक तक़लीफ़ देने का अंदाज़ है। चुननने में एक निश्चितता है और जिस तरह शब्द इस्तेमाल हुए हैं नुकशान पहुंचाने कि तीव्र इच्छा है। अगली बार जब आप ये गाना सुने और सहमे सहमे नज़र आयें तो मुझे कोई आश्चर्य नही होगा।

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Dawn

By Kali Hawa I heard a Bird In its rhythmic chatter Stitching the silence. This morning, I saw dew Still incomplete Its silver spilling over...