Friday, September 26, 2008

एक दिन का कोंट्राक्ट ............................

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मेरे साथ एक अजीब सा वाकि़या हुआ; सुबह के वक्त में लिफ्ट में था के व्यक्ति दौड़ता हुआ लिफ्ट में घुसा, जगह पाने का संतोष मिलते ही अपने विचारों में खो सा गया। जल्दी ही वह गुन गुनगुनाने लगा, " न ना ना न न्न्न्न्न्न" वह हम से बिल्कुल ही बेखबर और बेपरवाह गुन गुनता रहा। जल्दी ही मैंने गीत के बोल पहचान लिए, " बलमा माने न, बैरी चुप न रहे, लागी मन की कहे, हाय पा के अकेली मोरी बैयाँ गहे....." वह व्यक्ति दक्षिण भारतीय था इस वजह से शायद गीत के शब्द उस के ज़ेहन में न आ रहे हों! जो भी हो, वह हमारी उपस्थिति को बिल्कुल ही नज़रंदाज़ करते हुआ अपने आप में बेखबर गुनगुनाता ही रहा.

उस रोज़ वह गीत मेरे जुबान पर चढ़ गया और दिन भर, वक़्त बे वक़्त होंटों पर चढा रहा। जैसे ही मै काम में मशगुल हो जाता गीत ज़ेहन में पीछे धकेल दिया जाता और फुर्सत के वक्त सामने आ जाता। दिन भर ऐसा ही चलता रहा. अगले रोज़ ज़िन्दगी फिर पटरी पर आ गई और वह गीत न जाने कहाँ खो गया.

मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है, न जाने किस वजह से किसी रोज़ कोई मधुर गीत जुबान पर चढ़ जाता है, दिन भर सर पर सवार रहने के बाद अगले रोज़ फरार हो जाता है .........................

काली हवा

2 comments:

हर्ष प्रसाद said...

I liked the spontaneity in all all your posts. Visit my blog someday and see if you like it or not.
http://la-ilaaj-harsha.blogspot.com/

Kali Hawa said...

शुक्रिया जनाब !

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