वह शख्स जो डेक्क पर खड़ा था
सोच रहा था
दिन की रौशनी में जो समंदर
तर -ओ -ताज़ा करने की कूव्वत रखता है
रात होते ही खौफनाक नज़र आता है
इस वक़्त, रात के अन्धेरे
उँगलियों में दबी सुलगती सिगरेट
एक लेज़र पेंसिल की तरह
रात के सियाह कैनवास पर
आड़ी तिरछी लकीरें खींच रही थी
कभी कोई चिंगारी हवा के झोंके उठती
एक लम्हा बल-खाती लट की तरह लहराती
फ़ना हो जाती
तन्हाई में वह शख्स कुछ सोच में गुम था ...
सामने जो खँडहर इमारत
आसमान की बुलंदी पर पहुँच रही थी
जान पड़ता था कोई लाइट हाउस होगा
pager , कलईवाला , रुई धुनने वाला ..
ऐसे ही इसका भी अहद गुज़र चुका था
ना जाने कितने ही भूले भटके सफीनों को राह दिखा
ख़ुद अपनी मंजिल की तलाश में चूक गया
उसकी दम तोडती हड्डियां
जिस्म से फूटते फव्वारे
लहरों की चीख़ पुकार के दरमियान
अपने वजूद, अपने हस्ती का ऐलान कर रही थी
यकायक उसे लगा
एक रौशनी का गोला उस के सामने
हवा में टंगा है
उसे लगा कोई कुछ कह रहा था
'ये तो होना ही था ....'
'क्या होना ही था ?' बरबस उसके मुंह से निकल पड़ा
'यही जो है वह नहीं है ..
जो आयेगा वह जाएगा भी ..
रुका कुछ भी नहीं है
सिर्फ रुकने का अहसास है
ज़िन्दगी का मरकज़ एक equilibrium है
उसके इर्द -गिर्द pendulum की मानिंद फिरती है
रफ़्तार का अहसास जीने की शक्ल है ....'
'आप कौन हैं ?'
'मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँ!'
'मेरा खुदा? '
'हाँ, तुम्हारा ख़ुदा!'
'क्या हर बन्दे का अपना ख़ुदा है ?'
'यक़ीनन! मैं तो महज़ उसकी सोच का projection हूँ
इंसान की सोचने की क़ाबलियत का नतीज़ा हूँ '
'इस गोल आकार का सबब ?'
'हर सू एक सा जो दिखता हूँ '
अचानक ही अन्धेरा छा गया
ऑंखें मल कर जब उसने देखने की कोशिश की
लाइट हाउस की तेज़ रौशनी
जो अब तक ठीक उस पर focus थी
अब गुल हो चुकी थी
उस जगह अब इक हल्का सा सफ़ेद गोला
अपनी आखेरी साँसें गिन रहा था
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