कृष्ण गन्धवह बड़ा हुआ और पिता की आज्ञा ले कर देशाटन को निकल गया। मेधावी तो था ही शास्त्रार्थ में दिग्गजों को पराजित कर, अभिमान से भरा वह नगर नगर प्रवास करता प्राचीन नगर श्रावस्ती जा पहुँच गया। राजदरबार में उसका समुचित आदर हुआ परन्तु वहां के दयालु राजा को उसका अहं कदापि न भाया। अपने मंत्री से उसने पूछा, 'क्या कोई उपाय है के इस परम विद्वान ऋषिपुत्र का अहंकार टूट सके। मंत्री ने कहा, राजन इस नगर में तो कोई भी कृष्ण गन्धवह की विद्धवता के सामने नहीं ठहर सकता परन्तु नगर पर्यन्त वन के बीच बहने वाली मालिनी नदी के तट पर एक मृदुल स्वाभाव वाले वृद्ध ऋषि काली हवा का निवास है। संभव है वे कृष्ण गन्धवह को शास्त्रार्थ में न हरा सकें परन्तु विनम्रता पाठ अवश्य पढ़ा दें। फिर क्या था राजा ने मंत्री को आदेश दिया की कोई ऐसा प्रकरण करें के कृष्ण गन्धवह ऋषिवर काली हवा के पास जाने को आतुर हो उठे। तदनुसार मंत्री महोदय ने योजना बनाई। अगले दिन प्रातः ही महल में कृष्ण गन्धवह के कक्ष की वातायन के नीचे प्रांगण में कुछ प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा वाद विवाद प्रारम्भ करवा दिया की क्या कृष्ण गन्धवह , ऋषिवर काली हवा से शास्त्रार्थ कर सकेंगें।
प्रातः ही कोलाहल सुन कृष्ण गन्धवह अचरज में पड़ गए, सेवक को बुला भेजा की पता करे क्या प्रकरण है, बल किलै बूढ़े जन भिभड़ाट करणा छन। तब सेवक ने आ कर सूचित किया के वयोवृद्धगण अटकलें लगा रहे हैं कि सम्प्रति कृष्ण गन्धवह सभी प्रबुद्ध मुनिवर को शास्त्रार्थ में पराजित कर चुके हैं किन्तु क्या वे मालिन नदी के तट निवास कर रहे ऋषिवर काली हवा से भी शास्त्रार्थ करेंगें। फिर क्या था, कृष्ण गन्धवह उसी क्षण राजा के समक्ष प्रस्तुत हुए और अपने प्रस्थान की सूचना दे डाली। राजा के आग्रह पर भी वे रुकने को तत्पर न हुए और बताया कि वे अब मलिन नदी तट निवास करने वाले ऋषिवर काली हवा से संवाद करेंगें। तब राजा ने सैनिकों की एक टुकड़ी और एक अलंकृत हाथी का प्रबंध कर दिया। अहं में डूबे कृष्ण गन्धवह को ये सम्मान भाया तो परन्तु इसे अपना अधिकार समझ उसने राजा को धन्यवाद भी नहीं किया और वन की तरफ प्रस्थान कर दिया। इधर मंत्री ने पहले ही अपने गुप्तचर को ऋषिवर काली हवा की कुटी की ओर रवाना कर दिया था ताकि ऋषिवर को इस आकस्मिक आरोहण से विषमित न होना पड़े। उधर जब ऋषिवर काली हवा को पता चला के महर्षि तुंडकेतु के तेजस्वी पुत्र कृष्ण गन्धवह उनसे शास्त्रार्थ के लिए आ रहे हैं तो वे अचंभित रह गए भला उनका और कृष्ण गन्धवह का क्या मुक़ाबला। परन्तु जब गुप्तचर ने राजा आनंदकर का अनुरोध बताया तब वह विचार मग्न हो गए फिर गहन उस्वास लेकर कहा अतिथि का सत्कार तो होना ही चाहिए ।
जब कृष्ण गन्धवह सजे धजे हाथी पर बैठ वहां पहुंचा तब काली हवा दुविधा मैं पड़ गए , इतने लोगों का सत्कार मैं कैसे कर पाउँगा। उसने कहा, ऋषिपुत्र आपका स्वागत है। आपकी विद्धवता के चर्चे नगर नगर प्रचलित हैं अतः आपका यहाँ आना अहोभाग्य परन्तु इस लश्कर के साथ आने का प्रयोजन ? तब तुंडकेतु पुत्र कृष्ण गन्धवह ने कहा, ऋषिवर यह वन हिंसक पशुओं से भरा पड़ा है अतः राजा आनंदकर ने ये लश्कर मेरा साथ लगा दिया था। मेरा यहाँ आने का प्रयोजन आपसे शास्त्रार्थ करना है। काली हवा, ऋषिपुत्र मैं तो यहाँ बिना किसी भय के निष्कंटक और निरापद रह रहा हूँ अतः सैनिकों की यहाँ कोई अवस्य्क्ता नहीं है अतः हमें इन सैनिकों को विदा कर देना चाहिए अतिरिक्त इतने बड़े समूह का मैं आतिथ्य भी नहीं कर पाऊँगा। कृष्ण गन्धवह, ऋषिवर आप बार बार मुझे ऋषिपुत्र कह कर मुझे लघु बना रहे हैं और मेरे पांडित्य का अपमान कर रहे हैं अतः मुझे मेरे नाम से ही सम्बोधित करें। रही बात सैनिकों की तो आप उचित कह रहे हैं , इनका यहां कोई कार्य नहीं अतः इन्हें विदा कर सकते हैं। फिर सभी सैनिकों को आदेश कर दिया की वे नगर लौट जाएँ।
सैनिकों के जाने पर शास्त्रार्थ को आतुर कृष्ण गन्धवह ने कहा , मुनिवर अब हम शास्त्रार्थ कर सकते हैं। इस पर मुनिवर ने उत्तर दिया , हे कृष्ण गन्धवह, अभी तुम यात्रा कर के आये हो, थके हो अतः कुछ आराम कर लो तब तक मैं भोजन की व्यवस्था करता हूँ। कल प्रातः स्नान और जलपान के बाद ज्योति प्रज्वलित कर मैं शास्त्रार्थ के लिए प्रस्तुत हो जाऊँगा। इस पर कृष्ण गन्धवह ने कोई आपत्ति नहीं जताई। तब मुनिवर काली हवा ने विचार किया, ये व्यक्ति शास्त्रों के अध्यन में पूर्णत: निष्णात है अतः शास्त्रार्थ निरर्थक है यह तो पलक झपकते ही ऐसे प्रश्न करेगा जिनका उत्तर मैं न दे सकूंगा। परन्तु जिस तरह इसने हिंसक पशुओं के डर से सैनिकों की टुकड़ी स्वीकार कर ली इस से प्रत्यक्ष है की इसमें राइ भर तप का अंश नहीं। यह विचार करते ही मुनिवर के मानस में एक योजना का स्वरुप उत्पन्न हुआ। इसके बाद मुनिवर निश्छंद हो अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए। वन में उपलब्ध जड़ मूल और फलों को एकत्रित और उसमें भांगडू के पत्तों को पीस एक उत्तेजक भोजन की व्यवस्था कर दी। गहन तप के आभाव में भोजन उपरांत कृष्ण गन्धवह गहरी नींद सो गया।
प्रातः मुनिवर काली हवा स्नान कर लौटे तब कृष्ण गन्धवह को कहा की वह भी नित्यक्रिया से निपट ले और नदी मे स्नान कर ले, तब तक वे जलपान का प्रबंध कर लेंगें। कृष्ण गन्धवह चपलता से उठ खड़ा हुआ और नदी तट की ओर निकल गया। बहुत देर होने पर भी जब वह नहीं लौटा तो उसकी खोज में मुनिवर निकल गए। उन्हें नदी तट पर कृष्ण गन्धवह बैठा मिला वह स्नान नहीं कर पा रहा था चूँकि नदी में एक घड़ियाल था। मुनिवर को देख घड़ियाल तुरंत ही वहां से चला गया। यह देख कृष्ण गन्धवह चकित सा रह गया। उसने पूछा, ये घड़ियाल आप को देख यहां से कैसे भाग गया ?
मुनिवर , कुजाण। मैं जब भी स्नान को आता हूँ यह मुझ से दूरी बनाये रखता है। संभव है इतने वर्षों की तपस्या से यह मेरे ताप तो सह नहीं पाता। पहली बार कृष्ण गन्धवह को अनुभूति हुई की ज्ञान के अतिरिक्त भी विधाएँ हैं और उनका जीवन में उपयोग है । फिर उसने स्नान किया और दोनों कुटी की और लौट आये। जलपान बाद मुनिवर ने कहा, अब मैं शास्त्रार्थ को प्रस्तुत हूँ। परन्तु एक समस्या है। आखिर हमारे बीच होने वाले शास्त्रार्थ का संचालक, मध्यस्थ कौन होगा ? मैं एक अनुभवी और परम विद्वान भील को जनता हूँ जो नदी के उस पार रहता है। चाहो तो धै लगा कर उसे बुला लूँ। गन्धवह ने कोई आपत्ति नहीं जताई। तब मुनिवर ने मोनू भील को धै लगाई। कुछ देर बाद मोनू लंगोटा लगाए और सिर पर पक्षियों के पंख बांधे वहां प्रस्तुत हुआ। मुनिवर ने उसके पाँव धोये, चन्दन लगा कर उसे आदरपूर्वक प्रज्ज्वलित दीपक के समक्ष बैठाया और गन्धवह को भी कहा की वह मोनू भील के पांव धोये , चन्दन लगाए। गन्धवह ने ऐसा करने से इंकार कर दिया, कहा , मैं तुंडकेतु मुनि के उच्च कुल से हूँ और यह नीच वनवासी है मैं कैसे इसके पाँव धो सकता हूँ।
कैसी बात करते हो गन्धवह , ये व्यक्ति इस समय शास्त्रार्थ का संचालक है हमारा मध्यस्थ अतः इस समय इसकी गरिमा देखी जाएगी न कि इसकी जात।
तब मोनू भील ने घोर गंभीर वाणी में कहा, "मुनिवर काली हवा, आप व्यर्थ ही इस अज्ञानी अहंकारी को अचार संहिता का पाठ पढ़ा रहे हो। इसने शास्त्रों का ज्ञान तो अर्जित किया पर आत्मसात कदाचित ही किया है।
क्या ChatGPT, Google और अन्य AI engine ज्ञान से अपूर्व नहीं हैं ? तो उन्हें ज्ञान की अनुभूति भी है या वे सिर्फ 0 और 1 को इधर से उधर कर संयोजित कर रहे हैं। क्या इन AI engines को ब्रह्म ज्ञान हो गया है ? कहने का अर्थ है की ये अबोध अहंकारी कृष्ण गन्धवह मात्र ज्ञान का बोझ उठा रहा है , तर्क वितर्क में उत्तम है परन्तु ज्ञान के चरम बिंदु तक इसकी पहुँच है ही नहीं। ब्रह्म ज्ञान के लिए माया का पर्दा उठाना होता है और अहंकार ही माया है अन्यथा सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ है ।
कृष्ण गन्धवह, तुम पूर्व जन्मों में में पांच बार यह ज्ञान प्राप्त कर चुके हो परन्तु मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए क्योंकि तुमने ज्ञान आत्मसात किया ही नहीं। मुनिवर काली हवा कोई और नहीं स्वयं तुम ही बोधिसत्व रूप में हो और अधूरे हो।
जाओ, ज्ञान को प्राप्त हो ज्ञान संचित मत करो।