Saturday, February 22, 2025

विक्रम और वेताल

 हठी विक्रमार्क ने वृक्ष से शव उतरा, कंधे पर रख चुप चाप शमशान की तरफ चलने लगा। तब उस शव में स्थित वेताल ने कहा, 'विक्रम,  मैं तुम्हारे अदम्य साहस की प्रशंसा करता हूँ।  रास्ता लम्बा है और थकाऊ अतः थकान दूर करने की लिए तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ। 

प्राचीन ताम्रलिप्ति में एक वणिक चंद्र बडोला रहता था। चूँकि ताम्रलिप्ति एक बड़ा समुद्र पट्टन था; जावा, सुमात्रा श्याम इत्यादि देशों से सामान से लदे बेडों का आना जान लगा रहता था  अतः उसका व्यवसाय अच्छा फलफूल रहा था।  परन्तु बडोला को द्यूत, अक्षक्रीड़ा की लत थी।  एक बार आनंद नाम का धूर्त  बडोला को नगर नर्तकी अम्बशोभा के महल ले गया जहाँ नृत्य के साथ द्यूत भी खेला जाता था।  अम्बशोभा के महल में आनंद काने ने पहले ही अपने मित्र अशोक चाकू और भास्कर बन्दूक को बुला रखा था।  तीनों ने मिल कर चंद्र बडोला को भरपूर मद्यपान कराया, जब वह होश में नहीं रहा तब उसे काली हवा के समुद्री बेड़े में फेंक दिया।  काली हवा का समुद्री बेड़ा सुमात्रा, जावा हो कर बाली जाने वाला था। इधर बेसुध बडोला, जलयान के उस खोंचे में पड़ा था जहां लाख, ताम्बे और चांदी बने हज़ारों गहने व्यापार के लिए रखे थे। उधर इन तीनों धूर्तों ने बडोला के व्यवसाय पर क़बज़ा कर लिया।  अगले दिन जब बडोला को होश आया तब वह अचंभित रह गया, अपने को लाख के बने खिलौनों और गहनों के ढेर पड़ा पा वह किंकर्तव्यविमूढ़ रह गया साथ ही डोलते लकड़ी के भंडार से उसे आभास हो गया की वह तो किसी व्यापारी बेड़े में है।  किसी तरह उसने शोर मचा कर नाविकों का ध्यान आकर्षित किया।  कपाट के खुलने पर नाविक भी अचरज में आ गए के ये कौन आगंतुक है और कैसे पोत में  आ गया।  व्यापारी काली हवा को खबर मिली के एक अनजान व्यक्ति भंडार गृह में पाया गया। पहले तो वह आगबबूला  हो उठा, फौरी तौर पर उसने कहा उस अनजान व्यक्ति को समुद्र में फेंक दिया जाय क्योंकि एक अनावश्यक व्यक्ति यात्रा में बोझ था पर फिर विचार कर उसने उस अनजान व्यक्ति को प्रस्तुत करने को कहा। बडोला प्रस्तुत होने पर काली हवा ने कहा, 'तुम कौन हो जलपोत पर कैसे? यदि तुम इसका समुचित कारण न बता सके तो तुम्हें समुद्र में फेंक देंगे। '

बडोला की सिटी पिट्टी गम हो गई, घिघियाते हुआ उसने अपने कहानी बताई फिर कहा वह इस यात्रा में जो कुछ भी उसे कार्य दिया जायेगा वह निष्ठा से करेगा और लौटने पर काली हवा को 100 स्वर्ण मुद्रा भी देगा।  

तब काली हवा अपने निजी पुरोहित, शुभाकर को बुलाया और पूछा की क्या बडोला सच बोल रहा है?

तब शुभाकर ने बडोला की हथेली देख कर कहा, 'ये निश्चित है के व्यक्ति ठग नहीं है। '

तत्पश्चात काली हवा ने बडोला को रसोइये का सहायक नियुक्त कर दिया और भुज्जी काटने, भाड़ा बर्तन धोना इत्यादि का उत्तरदायित्त्व सौंप दिया।  इसके अतिरिक्त, चूँकि बडोला पढ़ लिख सकता था और हिसाब लगाना आता था अतः उसे जलपोत की लॉगबुक एंट्री करना, विभिन्न पट्टन का विवरण, व्यापर की बही वगैरह को अप टू डेट रखना वगैरह कार्य भी उसी के हवाले कर दिया। 

इधर ताम्रलिप्ति में आनंद 'काना', अशोक 'चाकू' और भास्कर 'बन्दूक' ने चंद्र बडोला के अड्डे पर धावा बोल दिया पर उन्हें वहां कुछ न मिला। एक पुस्तिका मिली जिसमें   गुप्त संकेतों में उनके लोगों के नाम थे जिनसे बडोला को पैसे वसूलने थे, मात्रा 5 मुद्राएं, कुछ सौ कौड़ियां और दमड़ी मिली।  इन तीनों ग्याडूओं को व्यापार का कुछ भी ज्ञान न था अतः अड्डे में पड़ी सामग्री औने-पौने दामों में बेच दी।  जो पैसा मिला रात, अम्बशोभा के महल में मद्यपान और द्यूत में गँवा दिया। 'काने' ने देखा केवल तीन स्वर्ण मुद्रा बची थी उसने मटके में भरे पानी में विष घोल दिया। जब 'चाकू' और 'बन्दूक'  सुबह उठे तो रात मद्यपान के कारण dehydrated थे दोनों ने छक कर पानी पिया। देखते देखते 'चाकू' और 'बन्दूक' ने गाला पकड़ लिया, बात समझने में देर न लगी तब 'चाकू' ने चाकू फ़ेंक कर 'काने' पर प्रहार किया साथ ही साथ  'बंदूक' ने तमंचा निशाने पर दाग़ दिया।  मृत्यु के बाद तीनों ही पिशाच योनि को प्राप्त हुए।  

उधर बडोला निष्ठापूर्वक कार्य करता रहा, बाली पहुँचने पर काली हवा ने प्रसन्न हो कर उसे १०० स्वर्ण मुद्राएं दी साथ ही सभी बचे हुए लाख, ताम्बे और चांदी के गहने उसे दे कर वहीं व्यापार करने का परामर्श दिया जिसे बडोला ने सहर्ष स्वीकार कर लिए।  परन्तु उसके ह्रदय में बदले की भावना आग की तरह सुलग  रही थी। 

दो वर्ष हुए बडोला ने मेहनत और कौशल से बाली में अच्छा व्यापर खड़ा कर लिया परन्तु ताम्रलिप्ति में जो हुआ उसको वह भुला न पाया। अपना प्रतिष्ठान अच्छे लाभ पर बेच कर वह लौटने को प्रस्तुत हुआ।  ताम्रलिप्ति लौटने पर वह अच्चम्भित रह गया।  उसके पूर्व में व्यवस्थित व्यापार का भट्टा बैठा था,  भवन जहाँ से उसका व्यापार चलता था, खंडहर बना हुआ था परन्तु सबसे दुःखदायी दृश्य  भवन के सामने बरगद वृक्ष के नीचे उसने देखा कि उसकी पत्नी , कलिण मीनाक्षी देवी और बेटी भीख मांग रहे थे।  वह क्रोधित हो उठा और कलिण मीनाक्षी को फटकार लगाई के वह भीख क्यों मांग रही है। उसने 1000 स्वर्ण मुद्राएं उसी बरगद के नीचे एक कलश में भर गाड़ रखी थी और ये बात  कलिण मीनाक्षी को कई बार बताई थी।  कलिण मीनाक्षी भी तैश में आ गई और कहने लगी। अचानक ही उसके लापता होने से वह किंकजर्तव्यविमूढ़ हो गई थी, जो कुछ घर में था उससे जितने दिन चल सका चला फिर भीख के अतिरिक्त कोई गुज़ारा न था।  जो हुआ सो हुआ, कह बडोला ने फिर से भवन की मरम्मत करवाई और अपना पुराना व्यापार फिर से खड़ा कर लिया।  इस बात की उसे घोर निराशा थी के वे तीनों आतताई मृत्यु के ग्रास हो चुके थे जिनसे बदला लेने की भावना उसके ह्रदय में प्रज्ज्वलित थी।  

कुछ दिन उपरांत नयी समस्या खड़ी हो गई उसके निवास पर प्रेतों का उत्पात प्रारम्भ हो गया। बर्तन डोलने लगते, चारपाई अपनी जगह से दूसरी जगह मिलती, भात डोंगे से बहार भूमि पर गिरा मिलता। बडोला परिवार परेशान हो गया। तब उसने ओझा वेद 'निर्भगी' को बुलाया और समस्या का निदान करने की उपाय सुझाने को कहा। 'निर्भगी' ने झाड़ू, छिपकली, चमगादड़ और शमशान की राख लाने को कहा। बडोला ने अपने सहायक ओम 'गूंगा' को पैसे दे कर सब सामान की व्यवस्था कर दी।   'निर्भगी' ने रात 12 बजे अग्नि जला कर डोंगे में छिपकली और चमगादड़ पकाया , राख की छौंक लगाई , झाड़ू से मिक्स कर एक कुल्हड़ भर पी लिया।  फिर क्या था कुछ ही देर में  'निर्भगी' दृश्यहीन हो गया।  कोलाहल होने लगा, अदृश्य जगत में थप्पड़, चांटे के आवाज़ें गूँज रही थी। फिर सब शांत हो गया।  कुछ ही देर बाद  'निर्भगी' मूर्छित अवस्था में वहां दृश्यगत हुआ।  होश में आने पर उसने बताया कि बडोला निवास पर 'काना', 'चाक़ू' और 'बन्दूक' पिशाचों का प्रकोप है।  वे तीनों ही पिशाच योनि में तब तक रहेंगे जब तक उनका विधिवत दाह संस्कार न होगा।  

यह कह कर वेताल रुक गया, कहने लगा, 'विक्रमार्क बडोला की दुविधा देखो, एक तरफ वह इन तीनों दुष्टात्माओं को दण्डित करना चाहता है दूसरी तरफ स्वयं एवं परिवार की शांति , उसे इन दोनों अवस्थाओं में से एक को चुनना है? तुम बताओ कौन सा मार्ग तर्कसंगत है।  यदि जानते हुए भी तुम उत्तर न दिया तो तेरे मुंड के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे।  


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Dawn

By Kali Hawa I heard a Bird In its rhythmic chatter Stitching the silence. This morning, I saw dew Still incomplete Its silver spilling over...